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शकील बदायुनी: प्यार लिखने वाला शायर, जिसने कितनों को स्टार बना दिया

इंसाफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चलके
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्ही हो कल के

या
नन्हा मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं
बोलो मेरे संग, जय हिंद, जय हिंद , जय हिंद….

हम में से बहुत से लोग भले ही गीतकार और शायर शकील बदायुनी को न जानते हों, मगर अपने इन गीतों के ज़रिए शकील साहब हमारे साथ बचपन से ही खड़े मिलते हैं। गीतकार की सफलता इस बात में है कि उसके गीत लोगों तक न सिर्फ़ पहुंचें, बल्कि उनकी ज़बान पर चढ़ जाएं और इस लिहाज़ से शकील बदायुनी हिन्दी गीतों के सबसे बड़े गीतकार हो जाते हैं।

50-60 का दशक भारतीय सिनेमा के इतिहास में गोल्डन पीरियड के रूप में याद किया जाता है। यह वही दौर था, जब पर्दे पर नायकों और पर्दे के पीछे गायकों का बोलबाला था। मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, शमशाद बेग़म, आशा भोसले, हेमंत कुमार, गीता दत्त, मुकेश आदि कितने ही गायक हैं, ‘जिनके गीत’ आज भी लोग गुनगुनाते हैं।

‘जिनके गीत’- यह एक ऐसा वाक्यांश है, जिसके पहले जाने-अंजाने अक्सर ही गायकों का नाम जोड़ दिया जाता है और यही कारण है कि हिन्दी सिनेमा में गीतकार को कभी वो पहचान नहीं मिल पाई, जिसके वो हक़दार रहे हैं। इन सभी गायकों द्वारा गाए गए सैकड़ों गीत ऐसे हैं, जो ‘शकील बदायुनी के’ हैं क्योंकि वे गीत शकील बदायुनी की कलम से निकले हैं।

सादगी से प्यार लिखने वाले गीतकार शकील बदायुनी
शकील बदायुनी ऐसे शायर हैं, जो उतनी ही सादगी से प्यार को लिखते हैं, जितनी सादगी से प्यार दरअसल होता है। उनके गीतों में प्यार अपने पूरे शबाब के साथ आता है फिर भी अपनी नैसर्गिकता बनाए रखता है। शकील दूसरे शायरों की तरह प्यार के जज़्बात बयां करने के लिए कल्पना का सहारा कम ही लेते हैं इसलिए उनके गीत ज्यादातर लोगों को अपने गीत लगते हैं। शकील को रूमानी गीतों के लिए जाना जाता है, मगर उन्होंने रूमानी गीतों के साथ-साथ देशभक्ति और भक्ति गीत भी ख़ूब लिखे। फ़िल्म ‘बैजू बावरा’ में उनके द्वारा लिखा गया ‘ मन तड़पत हरि दर्शन को आज’ सबसे उत्कृष्ट भक्ति फ़िल्मी गीतों में से एक है। शकील बदायुनी द्वारा लिखे गए होली गीत आज भी फाल्गुन की मस्ती में रंग बरसाते हैं। कहने का अर्थ ये है कि शकील को सिर्फ़ रूमानी गीतकार कहना गलत है क्योंकि उन्होंने हर उस विषय पर गीत लिखा है, जो उन्होंने अपने आस-पास देखा।

उनके तमाम गीतों में ‘चौदहवीं का चांद हो’, ‘अपनी आज़ादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं’, ‘जब चले ठंडी हवा’, ‘ज़रा नजरों से कह दो जी’, ‘कहीं दीप जले कहीं दिल’, ‘भंवरा बड़ा नादान है’, ‘मधुबन में राधिका नाचे रे’, ‘न जाओ सइयां छुड़ा के बइयां’, ‘इंसाफ़ की डगर पे’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’, ‘तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करूं’, ‘नैन लड़ जइहें’, ‘सुहानी रात ढल चुकी’, ‘बेक़रार करके हमें यूं न जाइये’, ‘मोहे पनघट पे’ आदि ऐसे गीत हैं, जो लोगों के बीच आज भी पॉपुलर हैं। इनमें से ज़्यादातर गीत अपने सीधे-सादे लिरिक्स और ख़ूबसूरत धुनों की वजह से लोगों की ज़बान पर चढ़े हुए हैं।

नौशाद और शकील की जोड़ी
शकील बदायुनी ने सबसे ज्यादा काम संगीतकार नौशाद के साथ किया। नौशाद साहब अक्सर ये दावा भी करते थे कि शकील बदायुनी को वो ही फ़िल्मों में ले कर आए। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि शकील बदायुनी को अपनी फ़िल्मों में ब्रेक देने वाले फ़िल्म डायरेक्टर ए. आर. क़ादरी ने उन्हें 1946 में दिल्ली के एक मुशायरे में सुना था और वहीं उन्हें बंबई आने का न्यौता दिया था। अलबत्ता, ये बात सच है कि बंबई पहुंचने के बाद शकील बदायुनी की सबसे पहली मुलाक़ात नौशाद साहब से हुई और उनके ज़रिए ही उन्हें फ़िल्म ‘दर्द’ के सभी गाने लिखने का मौक़ा मिला था। इसके बाद शकील बदायुनी ने 100 से ज़्यादा फ़िल्मों के लिए एक से बढ़कर एक नग़्मे लिखे, जिनमें ‘मुग़ल-ए-आज़म’, ‘बैजू बावरा’, ‘मदर इंडिया’, ‘शबाब’, ‘मेरे महबूब’, ‘उड़न खटोला’, ‘कोहिनूर’, ‘आन’, ‘दीदार’, ‘गंगा-जमुना’, ‘लीडर’, ‘संघर्ष’, ‘आदमी’ आदि कई हिट फ़िल्में शामिल हैं। एक ज़माने में संगीतकार नौशाद और गीतकार शकील बदायुनी की जोड़ी किसी भी गाने के हिट होने की गारंटी होती थी।’

शकील बदायुनी को लगातार 3 साल बेस्ट लिरिसिस्ट का फ़िल्म फे़यर अवार्ड मिला था। ये अवार्ड उन्हें 1961 में उनके गीतों ‘चौदहंवी का चांद हो या आफ़ताब हो’ , 1962 में ‘हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं’ और 1963 में ‘कहीं दीप जले कहीं दिल’ के लिए मिला था।

 

मुशायरों के हीरो थे शकील बदायुनी
शकील बदायुनी फ़िल्मी गीतकार होने से पहले शायर थे और अच्छी बात ये है कि फ़िल्मों में पॉपुलर होने के बाद भी वो शायर बने रहे। मुशायरे के मंचों पर उनके लिए अतिरिक्त आवभगत देखकर और उनके शानदार पहनावे और बालों का स्टाइल देखकर कई बार लोग उन्हें फ़िल्मी हीरो भी मान लेते थे। शकील साहब मुशायरों में ग़ज़लें पढ़ते थे, तो बहुत से लोगों को हैरानी होती थी कि जो शायर मुशायरों के मंचों पर लच्छेदार भाषा में ख़ालिस उर्दू ज़बान के शेर कहता है, वही फ़िल्मों में लिखते समय इतना सादा ज़बान कैसे हो जाता है कि लोगों की ज़बान उसकी ज़बान बन जाती है। शकील साहब जिस समय मुशायरे के मंचों पर आए उस समय मुशायरों में मजरूह सुल्तानपुरी, ख़ुमार बाराबंकवी, दिल लखनवी, राज़ मुरादाबादी, शेरी भोपाली और फ़ना निज़ामी जैसे बड़े शायरों का बोलबाला हुआ करता था। मगर अक्सर शकील बदायुनी इन सबमें बाज़ी मार ले जाते थे क्योंकि शेरों के साथ-साथ शकील साहब का तरन्नुम भी बहुत अच्छा था। शकील साहब जब अपने पूरे शबाब के साथ तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ते, तो हर तरफ़ से वाह-वाह और मुक़र्रर इरशाद का शोर सुनाई देता था।

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सप्लाई ऑफ़िसर से बन गए शायर
शकील बदायुनी का असली नाम ‘शकील अहमद’ था और उनका जन्म 3 अगस्त 1916 में उत्तर प्रदेश के ‘बदायुं’ में हुआ था। शकील ने 14 वर्ष की उम्र से ही शेर कहना शुरू कर दिया था। उनकी शुरुआती शिक्षा घर पर ही हुई। शकील साहब ने 10वीं की पढ़ाई बदायुं के ही हाफ़िजा सिद्दीक़ी इस्लामिया हायर सेकेंड्री स्कूल से की और फिर 1937 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बी. ए. पास किया। 24 साल की उम्र में उनका निकाह ‘सलमा बी’ के साथ हुआ। शुरुआत में शकील साहब ने दिल्ली में ‘सप्लाई ऑफ़िसर’ के तौर पर कुछ समय तक काम किया और फिर 1946 में ही वे बंबई चले गए। इसके बाद 1947 में उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म दर्द के लिए गाने लिखे, जिसका टुनटुन द्वारा गाया हुआ ‘अफ़साना लिख रही हूं दिल-ए-बेक़रार का’ काफ़ी पॉपुलर हुआ। इसके बाद बंबई ने शकील साहब को अपना लिया और शकील साहब ने बंबई को। 20 अप्रैल 1970 को केवल 53 साल की उम्र में शकील साहब दुनिया से रुख़सत हो गए।

 

जिगर मुरादाबादी ने की थी तारीफ़
शकील बदायुनी का पहला संग्रह ‘रानाईयां’ आया, तो मुशायरों के साथ-साथ अदीबों के बीच भी उनके चर्चे होने लगे। ‘रानाईयां’ की भूमिका में तो ख़ुद जिगर मुरादाबादी ने लिखा कि, ‘ इस तरह के शेर अगर कोई व्यक्ति जीवनकाल में कह दे तो मैं उसे उचित अर्थों में शायर स्वीकार करने को तैयार हूं।’

शकील बदायुनी के कुछ ऐसे ही शेरों के साथ आज उनकी जयंती के मौक़े पर हम उन्हें याद कर रहे हैं।

आप जो कुछ कहें हमें मंज़ूर
नेक बंदे ख़ुदा से डरते हैं

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूं आज तिरे नाम पे रोना आया

काफी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात
आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया

कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई

उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद
वक़्त कितना क़ीमती है आज कल