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पढ़ें, फिल्म इत्तेफाक का रिव्यू

इस फ़िल्म के रिलीज होने से पहले से ट्विटर पर एक ट्रेंड चला हुआ है “से नो टू स्पॉइलर्स” का, जिसका सीधा-सीधा मतलब ये था कि फ़िल्म से जुड़े लोग नहीं चाहते थे कि फ़िल्म का सस्पेंस कहीं से भी लीक हो, उसके लिए पूरे प्रयास भी किये गए, और फ़िल्म का ज्यादा प्रचार भी नहीं किया गया, इसके लिए अलग मार्केटिंग स्ट्रेटजी बनाई गई। दरअसल, ये फ़िल्म 1969 में आई यश चोपड़ा निर्देशित और राजेश खन्ना अभिनीत “इत्तेफाक़” की रीमेक है, इस फ़िल्म में कुछ बदलाव किए गए हैं ताकि दर्शकों की दिलचस्पी बनी रहे। इस फ़िल्म ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है।

फ़िल्म की कहानी शुरू होती है, डबल मर्डर से जिसमें अपराधी बनाए गए होते हैं, यूके के मशहूर लेखक विक्रम सेट्टी(सिद्धार्थ मल्होत्रा), जो पुलिस से भागते-भागते आखिरकार पकड़े ही जाते हैं और फिर शुरू होता है जाँच-पड़ताल का सिलसिला और इसकी ज़िम्मेदारी मिलती है पुलिस अधिकारी देव (अक्षय खन्ना) को।

इस फ़िल्म में दो मर्डर होते हैं एक विक्रम की पत्नी की और दूसरी माया (सोनाक्षी सिन्हा) के पति की, दोनों मर्डर का इत्तेफाक़ से कुछ कनेक्शन बन जाता है। कहानी इन्हीं दोनों किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। विक्रम और माया दोनों की अपनी-अपनी कहानी होती है, जो वे देव को सुनाते हैं, दोनों ही खुद को बेक़सूर और एक दूसरे को कातिल बताते हैं। इस मर्डर केस को सुलझाते हुए देव कई बार खुद उलझते नज़र आते हैं क्योंकि इस फ़िल्म में दो कहानियां चलती हैं, एक विक्रम की और दूसरी माया की जो बिल्कुल ही अलग-अलग होती हैं। आखिर ये डबल मर्डर किसने किया? क्या दोनों ने ही मिलकर ये मर्डर किए? या फिर कोई तीसरा भी था? यही इस फ़िल्म का सस्पेंस है, जिसे देखने आपको सिनेमाघरों का रुख करना पड़ेगा।

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107 मिनट की ये फ़िल्म अपने सब्जेक्ट से कहीं भी भटकती नहीं दिखाई देती, फ़िल्म की स्क्रिप्ट बहुत ही कसी हुई है, फ़िल्म का लेखन भी बहुत ही सराहनीय है, बीआर चोपड़ा के पोते अभय चोपड़ा ने निर्देशन की अच्छी शुरुआत की है उनका डायरेक्शन उम्दा है। फ़िल्म में कोई भी गाना नहीं क्योंकि अगर फ़िल्म में कोई गाना होता तो शायद फ़िल्म की रफ़्तार थोड़ी प्रभावित होती लेकिन फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक आपको बांधे रखता है।

जहाँ तक अभिनय की बात है तो फ़िल्म में मूल रूप से तीन ही मुख्य किरदार हैं, उनमें सिद्धार्थ मल्होत्रा जो कि एक मॉडर्न लेखक हैं उन्होंने अपने किरदार को बखूबी निभाया है, उनकी मासूमियत इस फ़िल्म में झलकती है उनके किरदार के कई पहलू हैं, जिनमें उन्होंने प्रभावित किया है। पुलिस अधिकारी के किरदार में अक्षय खन्ना का कोई जवाब नहीं, वो एक मंझे हुए कलाकार हैं, यह बात उनके किरदार में स्पष्ट दिखाई देती हैं, उनकी पंच लाइन्स इस फ़िल्म में बहुत ही शानदार रहे हैं, जैसे उनका ये बोलना कि “ऐ बेटा तेरे जैसे भुट्टे हम रोज सेकते हैं, तुम लेखक हो ना कहानी अच्छी बना लेते हो, इत्यादि।” सोनाक्षी सिन्हा ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है, उन्हें जितना भी स्पेस मिला उन्होंने उसे अच्छे से निभाया है। एक पुलिस कांस्टेबल वाला किरदार आपको बीच-बीच में हंसाता रहेगा।

जहाँ तक फ़िल्म देखने की बात है तो इस फ़िल्म का क्लाइमेक्स तो इम्पॉर्टेन्ट है ही लेकिन उसके साथ-साथ इस फ़िल्म का फिल्मांकन और अभिनेताओं का अभिनय भी उम्दा है। मै ये तो नहीं बताने वाला कि आखिर असली कातिल है कौन? क्योंकि ये बात तो सच है फ़िल्म बनाने में बहुत मेहनत और पैसा लगता है और ये भी बात सच है कि दर्शकों के भी पैसे का नुकसान नहीं होने चाहिए, उनके भी पैसे मेहनत से ही आते हैं तो इस वीकेंड आपको असली सस्पेंस और थ्रिल का मजा लेना है तो आप इत्तेफाक़ में विश्वास कीजिये और इत्तेफाक़ देखने ज़रूर जाइये।