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कविताई

बहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना

फ़लक से तोड़कर क़िस्सा ज़मीनी तौर पर कहनाबहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना. किसे चाहें किसे… Read More

रात दरवाज़े पर दस्तक दे रही है

रात अब दरवाज़े पर खड़ी है रह-रह के सायरन की सदा आ रही है. Read More

हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी…

हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी दुनिया भर को घर कर देगी आज़ादी. दिल में रह-रह मौज उठेगी आज़ादी… Read More

सब राहों के अन्वेषी बचे-खुचे जंगलों के साथ ही कट गये

अब नहीं हैं प्रणययार्थी, न उनकी गणिकाऐं, वो गदिराए बदन भी नहीं हैं जिनपर लिख सको कामसूत्र जैसा ग्रंथ तुम… Read More

ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म

इसी इक मोड़ पर अक्सर गिरा जाता है ऊंचाई से अपनी ज़ात और ख़ाका मिटाया जाता है सब कुछ हो… Read More

हम फिर वापस आएंगे!

फिर से हम जिन्दा लाशें,अपने मरे हुए सपनों से, नाउम्मीदी ओर जिल्लत की जिंदगी सेफिर से हम आपके रुके हुए… Read More

शहरों से ठोकर मिला, हम चल बैठे गांव

माना अपने गांव में, रहता बहुत कलेस। कुल पीड़ा स्वीकार है, ना जाइब परदेस। Read More

बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..

डर से निजात पा चुकीं, जीने को मरने आ चुकीं, धरने पे मुल्क ला चुकीं, ज़िद इनकी है बहाल, सलाम.. Read More

मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है

आप की याद भी बस आप के ही जैसी है, आ गई यूँही अभी यूँही अभी जाती है। Read More

नज़्म ‘औरत’: माथे पर लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती

माथे पे लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती... जब भूख लगी तब मैं, या प्यास लगी जब तब मैं हाथ लगी… Read More