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हैप्पी न्यू ईयर 2018: काश ये साल महज़ इवेंट के नाम न रह जाए

एक से एक इवेंट हो रहे हैं हमारे देश में, कुछ  सफल हो जाते हैं और कुछ असफल, हाल ही के वर्षों में बहुत से इवेंट हुए हैं, और अभी आगे देखना बाकी है कौन कौन से इवेंट होंगे या होने वाले हैं। जैसे किसी मूवी का ट्रेलर आता है बाद में मूवी पर इनका निर्धारित समय और तारीख होता है लेकिन आजकल जो इवेंट लॉन्च हो रहे हैं, न तो उनके ट्रेलर आने का कोई समय होता है और न ही रिलीज़ होने का।

मूवी का रिव्यू तो कोई भी देता है यहाँ तक कि दर्शक उसका रिव्यू अपने हिसाब से देते हैं और किसी का रिव्यू एक समान नहीं होता, लेकिन आजकल होने वाले इवेंट्स का रिव्यू सिर्फ कुछ लोग ही देते हैं वो भी एक स्वर में और झुण्ड बनाकर देते हैं क्यूंकि उन्हें इवेंट को सफल कराना होता या असफल, ये जो सोच लेते हैं उसको करने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं.

एन केन प्रकारेण इनको अपने उद्देश्य में सफल होना होता है. इनको अपने लक्ष्य की प्राप्ति तभी होती है जब हिन्दुस्तान की जनता इनके वश में या इनके झांसे में आ जाती है. जनता अपना दिमाग लगाना ही नही चाहती, लगाये भी कैसे ये जो जनता है न भारत की हनुमान जी की बहुत बड़ी भक्त है, जैसे हनुमान जी को अपने बल का ज्ञान नहीं रहता था ठीक वही हाल इस जनता का भी है.

एक बार इनसे इतना कह दो  “का चुप साधि रहा बलवाना” फिर देखो सही गलत की पहचान ये चंद मिनटों में कर देते हैं, लेकिन कोई आजकल नहीं कहता न कहेगा, सबको अपना उल्लू जो सीधा करना है, लेकिन आजकल के इवेंट प्रबन्धक थोड़ा होशियार हैं वे दूसरे के इवेंट को असफल करवाने के लिए कभी कभी याद दिलवा देते हैं पर अलग ढंग से, इस तरह इनका भी उल्लू सीधा हो जाता है. लेकिन कुछ भी हो जनता कोई मतलब नहीं रह गया है इसको बस इवेंट्स से मतलब रह गया है, नया इवेंट आये और हम चलें पंक्ति में लगने, जब से जियो आया है लाइन में लगने का शौक तो और भी बढ़ गया है. शून्य बनकर बैठे हैं, लेकिन वो भी ढंग से बन नहीं पा रहे हैं, शून्य हो यार उसी को यथार्थ में बदल दो, एक अच्छा इवेंट अगर इकाई है तो उसको दहाई बना सकते हो और यदि कोई बुरा इवेंट दहाई बन चुका है तो उसको इकाई बना सकते हो, शून्य समझ लिया है खुद को तो बहुत अच्छी बात है, इसी बहाने तुमने उस क्षमता को पहचान लिया है, प्रतीक्षा मत करो कि कोई आये और तुमसे कहे-

 कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेउ बलवाना।।

 पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिज्ञान समाना।।

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हे जनता! तुम जनार्दन हो तुमको यह सब याद दिलाने की आवश्यकता नही है, और जनार्दन को याद दिलाना पड़े तो हो चुका देश का कल्याण, नारे लगाते ही रह जाओगे, “पापियों का नाश हो, विश्व का कल्याण हो”।

इवेंट भी आने जरूरी हैं, इनके बिना भी कुछ नही हो सकता, लेकिन ढंग का, इवेंट ऐसा होना चाहिए जिससे जनता को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो। अच्छे इवेंट को सफल बनाओ, खराब को मिट्टी में मिला दो लेकिन उसके लिए तुमको एक बेहतर शून्य बनना होगा, वो शून्य जो मौका पड़ने पर अपनी सार्थकता को सिद्ध कर दे।अंत में यही कहना चाहूँगा

 “कवन सो काज कठिन जग माहीं ।जो नहिं होई तात तुम्ह पाहीं ।।

जय हिन्द जय भारत.

और हाँ इस लेख का किसी राजनीतिक दल से कोई लेना देना नहीं है।

   (यह लेख लोकल डिब्बा के लिए  कार्तिकेय दीक्षित ने लिखा है)