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अरे भइया! मोदीजी तो बस ले रहे हैं

क्या भइया, इतने बड़े सेठ हो फुटकर नहीं है? दिनभर नोट ही छाप रहे हो और पांच सौ का खुल्ला नहीं है।
क्यों मज़े ले रहे हो साहब! आजकल सब हमारी ले ही रहे हैं, आप काहें छोड़ोगे?
मैंने ऐसा क्या कह दिया साहब?
कुछ नहीं भाई, आप व्यंग्य मार रहे हो, मोदी जी मुनाफा मार रहे हैं। जबसे आए हैं ले ही रहे हैं।
क्या?
कुछ नहीं भैया मोदी जी ले रहे हैं हमारी…..मोदी जी मार रहे हैं।

चौंकिए मत।
इसे पढ़कर आपको कुछ फील होगा, अच्छा या बुरा। मगर जिसने ये बात कही है उसके दिमाग में खयाल नहीं बवाल चल रहा होगा। आम आदमी भी एक सीमा तक ही सहता है, जब आदमी के सब्र का बांध टूटता है तो वह बौखलाहट में गाली ही देता है, शुक्र है यह गाली नहीं है। वैसे भी यह शब्द हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है। दिन में कई दफा हर इंसान इस शब्द का इस्तेमाल करता है। इसलिए इसे गाली न समझिए, यह महज एक बात है।

दरअसल, हुआ यूं कि एक चाय की दुकान पर मैं समोसे खा रहा था। समोसा खाना बड़ी बात नहीं है, आधा देश समोसा या ब्रेड पकौड़ा ही खाता है रोज। जब पेमेंट करने के लिए पर्स निकला तो उसमें इकलौता नोट फड़फड़ा रहा था, वो भी पांच सौ का। समोसा वाला नोट देखते ही बोला भाई खुल्ले पैसे दियो। मैंने कहा, ‘भाई सेठ आदमी हो तुम्हारे पास फुटकर नहीं होगा तो किसके पास होगा?’
समोसे वाले ने जवाब दिया कि काहे का सेठ भइया मोदी ने ले रखी है। जब से आया है बवाल काट रहा है। सौ तरह के टैक्स, नोटबन्दी और जीएसटी-फीएसटी लगाकर धंधा मंदा कर दिया है। पहले पांच हजार तक रोज कमा लेता था अब हजार भी बहुत मुश्किल से मिलता है। मंडी से लेकर चैराहे तक हर जगह मंदी की मार है।
मैंने पूछा नोटबन्दी से मंदी का क्या लेना-देना है?
समोसे वाले ने कहा साहब हमें भी नहीं पता लेकिन धंधा मंदा हो गया है।
अब पहले जितनी बिक्री नहीं रही। जो गली-गली घूम-घूमकर फेरी लगते हैं, उनसे पूछो क्या नुकसान हुआ है नोटबन्दी से।
बड़के धंधे वाले तो निबुक लिए लेकिन हम जैसों की तो कमर टूट गयी है।

चायवाला ज्ञानी नहीं है ना!
वो अर्थशास्त्री नहीं है। न ही उसकी मोदी से कोई राजनीतिक दुश्मनी है कि वो मोदी को जलन की वजह से कोस रहा है लेकिन कुछ तो है देश में जो गड़बड़ है।
चाय और समोसे की दुकानों में मिली जानकारी आपको टीवी के न्यूज़ रूम में नहीं मिलने वाली। बुद्धु बक्से में चिल्ला-चिल्लाकर पागल कर देने वाला बेहूदा एंकर हिन्दू-मुसलमान को लड़ा सकता है लेकिन आम आदमी की असली मुश्किलें नहीं दिखा सकता क्योंकि आजकल उसका काम देशभक्ति बेचना है।

सही में लोग परेशान हैं सरकार से
क्यों है? सबके पास हज़ार वजहें हैं बताने के लिए। सबके लिए मोदी अलग-अलग तरह से विलेन बने हुए हैं। अगर यकीन न हो तो रैंडम ही किसी दुकानदार से पूछिए। मोदी जी कैसे लगते हैं? 6-7 महीने पहले तक जैसी छवि मोदी की थी वैसी अब नहीं है। अब लोगों को मोदी जुमलेबाज से ज्यादा नहीं लग रहे हैं। अलग बात है वोट उन्हीं के खाते में जा रहे हैं। anti incumbency भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही है। हां! वह पूरा बिगाड़ने के फिराक में हैं। अगर वह नहीं तो उनके चमचे जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहों है।

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मोदी जी दावोस जाने वाले हैं। उनके साथ सुरेश प्रभु भी जाएंगे। बृहस्पतिवार को मारया शकील के साथ उनका interview देख रहा था। भारत की बनती-बिगड़ती अर्थव्यवस्था को वह लगातार शीर्ष पर पहुंची हुई बता रहे थे। एंकर बार-बार बोल रही थी कि भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है, ऐसे में कैसे वैश्विक निवेश को आमंत्रित करेंगे। प्रभु जी भी यही दोहरा रहे थे कि मोदी जी की वजह से पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है।

मैंने समोसे वाले से पूछा भइया ये बात कितनी सही है, उसका जवाब था, हमारी लंका लगाकर मोदी जी डंका बजा रहे हैं तो क्या खास बात है इसमें।

ये महज बात नहीं है। हमारी और आपकी आंखों के सामने भी नज़ारे बदले-बदले से हैं। लोग सुधारों की बात कर रहे हैं, पारदर्शिता की बात कर रहे हैं लेकिन सही बात ये है कि लोग बात ही कर रहे हैं। काम करते तो थोड़ा सुकून मिलता। मौसम सर्द है, रूम के अंदर भी दांत कटकटा रहे हैं लेकिन शहरों में किसी पुल, मेट्रो स्टेशन, बस अड्डे के नीचे झांकिए, लोग सोते नज़र आएंगे। उनके सिर पर छत नहीं है और मोदी जी देश में निवेश ला रहे हैं।

कौन लेगा और कौन देगा?
यह तर्क मत दीजियेगा कि कुछ काम राज्य सरकारों के हिस्से में आता है। अगर राज्य के सौ बुरे कामों में अड़ंगा डाल सकते हैं तो उनसे कुछ अच्छा क्यों नहीं करवा सकते? आधार अनिवार्य कराने के लिए सरकार मरी जा रही है लेकिन सिर पर छत को अनिवार्य क्यों नहीं कराती यह सरकार? नहीं, कोई सरकार नहीं ऐसा कुछ करने वाली है। लोगों के सिर पर छत नहीं होगा। लोग भूखे सोएंगे, मरेंगे भी। सिस्टम से परेशान रहेंगे।
लोग बेघर रहेंगे। क्योंकि वे उम्मीद करते हैं।
सरकार से उम्मीद गलत है। सरकार देना नहीं जानती, लेना जानती है। नींद सुकून सब। कल तक मनमोहन ले रहे थे, आज मोदी ले रहे हैं कल कोई और आ जायेगा लेने। जनता देती रहेगी। देने की आदत है।

समोसे वाला ठीक कह रहा है। मोदी जी ले रहे हैं क्योंकि जनता दे रही है। नींद, सुकून, चैन, अमन, सहिष्णुता और देशभक्ति। सब।

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