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बच्चों की मौत पर गंभीर क्यों नहीं होतीं सरकारें?

प्रतीकात्मक तस्वीर

बच्चों की लगातार हो रही मौतें पर आरोप-प्रत्यारोप की चार्जशीट तैयार की जा रही है. जिस देश की रगों में खून से ज्यादा राजनीति बहती हो, वहां इसके होने से किसी को ऐतराज भी नहीं है. बच्चों की मौतों को लेकर किसी भी सरकार में सवेदनशीलता नहीं दिखती है. हर सरकारों के हाथ खून से सने हुए हैं. कोई यहां बेदाग नहीं है.

राजस्थान के कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल में दिसंबर से लेकर अब तक कुल 107 बच्चों की मौत हो चुकी है. लगातार मौतें हो रही हैं. राज्य के मुखिया अशोक गहलोत से बच्चों की मौत पर जवाब मांगा तो उन्होंने कहा कि देश के हर अस्पताल में 4-5 मौतें प्रतिदिन होती हैं. बीजेपी की सरकार थी तो 1000 बच्चे मरते थे और हमारे समय में 900 बच्चे मर रहे हैं.

दरअसल उन्होंने झूठ कुछ नहीं कहा है लेकिन जो कहा है उस बयान को गैरजिम्मेदाराना बयान कहते हैं. वे ठीक वही काम कर रहे हैं कि जैसे भारतीय जनता पार्टी कहती है कि देश की दुर्गति, अर्थव्यवस्था और सीमा विवाद के लिए नेहरू जिम्मेदार हैं. अब तो सारी बागडोर तुम्हारे हाथ में हैं, अब सुधार लो भाई, दिक्कत क्या है.

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बिहार और उत्तर प्रदेश का सदमा देश झेल ही रहा था इसी बीच देखते देखते एक अस्पताल में 107 से ज्याादा बच्चों की मौत हो गई. बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष की नींद टूटी, एक टीम गठित की. जेके लोन अस्पताल भेजा. वहां से राजनीति के अलावा कुछ बाहर नहीं निकला. वसुंधरा राजे सरकार से ही अस्पताल दुर्व्यवस्था झेल रहा है, जिसे अब तक अशोक गहलोत भी ठीक नहीं करा सके.

बीजेपी की टीम ने जो रिपोर्ट कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा को पेश किया उसमें दावा किया गया है कि अस्पताल की हालत बेहद खराब है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि न तो स्टाफ का रवैया अच्छा है, न ही अस्पताल का मूलभूत ढांचा. 65 बेडों की क्षमता वाले अस्पताल में 100 से ज्यादा भर्ती हैं. इंफेक्शन, बदहाली, जर्जर स्टाफ से लेकर अस्पताल में खराब और पुरानी मशीनें है. इन मशीनों को बदलवाने की जहमत किसी ने नहीं उठाई. न वसुंधरा राजे ने, न ही अशोक गहलोत ने.

मोदी जी! टॉयलेट, अस्पताल, स्कूल…अर्थव्यवस्था..कुछ न चंगा सी

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लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला का यह संसदीय क्षेत्र है. बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ा तो उन्होंने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से सीएसआर के जरिए खराब मशीनों की बदलने की गुहार लगाई. गुहार लगाई है, कितना अमल होता है, यह देखने वाली बात होगी.

बात-बात पर दौरा करने वाले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन कुछ करते नजर नहीं आ रहे हैं. 100 का आंकड़ा पार जब हुआ तो उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम को कोटा रवाना किया. चाहते तो वैकल्पिक अस्पताल वहां खोल सकते हैं. देश के स्वास्थ्य मंत्री हैं, लेकिन सबको सियासत चमकानी है.

अशोक गहलोत जिम्मेदारी लेने को नहीं तैयार हैं. नौटंकी राज्य और केंद्र दोनों ओर से की जा रही है. जून 2019 में बिहार में चमकी बुखार से140 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई थी. अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन खत्म होने से करीब 60 बच्चों की मौत हो गई थी. एक मंत्री ने तब कहा था कि अगस्त महीने में बच्चों की मौतें होती रहती हैं. अशोक गहलोत ने भी यही कहा है.

आंकड़े अलग-अलग जगहों के अलग हो सकते हैं. मौतें सबके यहां हुई हैं. बिहार में नीतीश कुमार नहीं कुछ कर पाए. गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ. कोटा में अशोक गहलोत.

सरकारों ने हर बार बेशर्मी दिखाई है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वहां इनके अपने बच्चों को कुछ नहीं हो रहा है. अगर कुछ होता तो शायद कुछ करते, जिससे बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य लाभ मिल पाता.

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