राहुल गांधी जब कभी विदेश जाते हैं सुपर एक्टिव मोड में आ जाते हैं. देश में वे कई बार ऐसा लगता है कि भांग खाकर बोलते हैं. बिलकुल कूल डूड बच्चे की तरह. विदेश में उनके भीतर खानदानी आवाज बाहर निकलती है जो उनके खून में दौड़ रही है. जवाहर के प्रपौत्र, इंदिरा के पोता, और राजीव के लाल. राजनीति खानदान में रची बसी है. मां अगर बेहतर रणनीतिकार न होती को सप्रंग किसी भी कीमत पर मनमोहन सिंह के मुखड़े पर चुनाव नहीं जीतती.
देश के भीतर राहुल गांधी के मुंह के भीतर जमी दही विदेश पहुंचकर पिघल जाती है. वहां वे जमकर देश की गतिविधियों पर बयानबाजी करते हैं. जी भर. ऐसा लगता है भीतर का विपक्ष सत्ता में आने के लिए उबाल मार रहा है.
लंदन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटिजिक स्टडीज में की फायर होते हुए राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर निशाना साधते हुए संगठन की तुलना अरब देशों की मुस्लिम ब्रदरहुड से कर दी. वहां से सत्ता के खिलाफ जमकर हल्ला बोला.
संघ एक दक्षिणवादी संगठन है लेकिन वहां के किसी भी उच्च पदस्थ अधिकारी ने अतिवाद थोपने की वकालत नहीं की है. मुस्लिम ब्रदरहुड की तुलना में तो कतई नहीं. मिश्र के सबसे पुराने इस्लामिक अतिवादी संगठन की स्थापना करने वाले हमन अल बन्ना और संघ के संस्थापक डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार दोनों की सोच में जमीन आसमान का अंतर है. यह सच है कि हर संगठन अपनी मूल विचारधारा से कट चुका है लेकिन इतना भी नहीं कि उसकी तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर दी जाए.
मुस्लिम ब्रदरहुड इस्लामी देशों में शरिया कानून लगाने की करने की पक्षधर है. साथ ही यह संगठन कई हिंसकर गतिविधियों में शामिल रहा है लेकिन आरएसएस पर हिंसा भड़काने के आरोप नहीं हैं. संगठन के शीर्ष नेतृत्व से हिंसा की हर गतिविधि की निंदा की जाती है.
मुस्लिम ब्रदरहुड यूएई, रूस, सऊदी और मिश्र में आतंकी संगठन के तौर पर दर्ज किया जा चुका है. संघ पर भले ही तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका हो पर अगर इस पर आतंकी होने का आरोप लगाया जा रहा है तो उसके कारण केवल राजनीतिक होंगे.
मुस्लिम ब्रदरहुड का मकसद देशों में इस्लामी कानून लागू करना है
संघ ने कभी नहीं कहा कि जबरन सबको गीता पढ़ाया जाए या सबको वेदपाठी बनाया जाए. संघ में सभी धर्मों के सम्मान की बात सिखाई जाती है. संघ का अपना अल्पसंख्यक मोर्चा है जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए सम्माननीय स्थान दिया गया है. अरब का इतिहास उठाकर देखें तो लोकतांत्रिक देशों के खिलाफ शरियत की लड़ाई मुस्लिम ब्रदरहुड कई बार कर चुका है लेकिन संघ का विश्वास लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हैं. संघ ने कभी नहीं कहा कि हिंदूवादी दर्शन पूरे भारत पर थोप दो या देश को पुरान पढ़कर चलाया जाए.
लेकिन जुबान ही है फिसल ही जाती है. प्रधानमंत्री अगर कांग्रेस पर किसी भी हद पर जाकर टिप्पणी कर सकते हैं तो राहुल गांधी क्यों न करें. विदेश में जाकर उन्होंने भी देश की खूब किरकिरी की है. जब सत्तर साल का इतिहास प्रधानमंत्री बताने लगते हैं तो वे यह नहीं देखते कि देश में हैं कि बाहर हैं.
कहीं से भी पूरे देश को भ्रष्टाचारी और अपने पूर्ववर्ती सत्ताधीशों की आलोचना कर सकते हैं. गलत संदेश जाता है. विदेश जाकर देश की थू-थू करने वालों को पुरणों में विभीषण कहा गया है. मुझे प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विभीषण लगते हैं और आपको?