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ग्राउंड रिपोर्ट सिद्धार्थनगर: योगी के दुलारे विधायक जी काम के नाम पर बस फोटो खिंचवाते हैं

ग्राउंड रिपोर्ट सिद्धार्थनगर: योगी के दुलारे विधायक जी काम के नाम पर बस फोटो खिंचवाते हैं

राजनीति में जब मेरी दिलचस्पी बढ़ी और मैं कुछ समझने लायक हुआ तो उस वक्त मेरे क्षेत्र में समाजवादी पार्टी से विधायक थे अनिल सिंह।
अनिल सिंह की छवि बहुत ही सज्जन व्यक्ति की थी। जनता उन्हें कई वर्षों बाद भी उनके काम की वजह से याद करती है।  मुझे याद है 2012 विधानसभा चुनावों में हमारा क्षेत्र आरक्षित होने जा रहा था इसलिए 2007 का विधानसभा सवर्णों के लिए जीतना बहुत ही जरूरी था। लोगों का कहना था कि यह चुनाव सवर्णों के लिए जीतना प्रतिष्ठा का प्रश्न था क्योंकि कई लोगों के लिए यह अंतिम चुनाव साबित होने वाला था। इसके बाद एसटी/एसटी उम्मीदवारों के लिए ही जगह बची थी।

हालात कुछ इस तरह बदले कि 2007 में ब्राह्मण के नाम पर कांग्रेस से ईश्वर चन्द शुक्ल जीत गए जो कि जुझारू प्रत्याशी रहे है। उन्हें सिर्फ इसलिए जनता ने जिताया कि वो कई वर्षों से लड़ रहे थे और ये विधानसभा सत्र उनके लिए आखिरी था क्योंकि हमारा विधानसभा क्षेत्र 30 साल के लिए आरक्षित हो रहा था। ईश्वर चन्द ने क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया क्योंकि उन्हें क्षेत्र से अब मतलब नही था, नेता जो ठहरे। 2007 से 2012 का समय गया, और अब आया आरक्षित सीट का चुनाव।

 

(विधायक जी के राज में सड़कों का बुरा हाल)

2009 से 2011 तक मैं गांव से अपने विद्यालय, नौगढ़ तक बाइक से जाता था। उस समय रास्ते में अक्सर गेरुवा वस्त्र में मोटरसाईकल पर पीछे बैठे एक शख्स मिला करते थे, नाम था श्यामधनी राही। राही वर्तमान में भाजपा के विधायक हैं, इस समय 2 स्कार्पियो और 1 टाटा स्ट्रोम इनके पास है।

बड़े पिताजी (श्री अरविन्द मिश्र ) ने बताया कि आरक्षित सीट से इन्हें ही भाजपा टिकट देगी क्योंकि राही हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता हैं और योगी आदित्यनाथ के करीबी हैं।  2012 का चुनाव आया, भाजपा ने राही जी को टिकट ना देकर, बस्ती के पूर्व सांसद राम चौहान को टिकट दिया। नतीजन सपा से विजय पासवान जीत गए जो उससे पहले हुए क्षेत्र पंचायत चुनाव में हार चुके थे।

अखिलेश यादव की लहर थी, चुनाव जीत गए।

(अटल विकास यात्रा में शामिल राही की फोटो)

विजय पासवान ने भी कुछ नहीं कराया, सिवाय फ़ोटो खिंचवाने के। सही बात तो यही है कि वे विधायक बनने के लायक नहीं थे।  उनके जीतने की वजह उनका पैसा, आरक्षित सीट और अखिलेश यादव की लहर। वर्ष 2017 में राही जी को टिकट मिला भाजपा से। भाजपा की लहर थी और राही जी क्षेत्र के व्यक्ति थे सो चुनाव जीत गये।

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अब एक साल से ऊपर हो गया उन्हें जीते हुए, सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं। हमेशा फ़ोटो अपडेट करते रहते हैं। मुझे भी बहुत उम्मीदें थीं उनसे, अब नहीं है।

17 महीने बहुत होते हैं कुछ करने के लिए। सरकार आपकी है, केंद्र में भी राज्य में भी, लेकिन जो विकास मुझे दिखा अपने क्षेत्र में वो बस राही जी के घर का, उनके बाहर के सड़क का, उनकी गाड़ियों का।

(फोटो में उन्नत सड़कें)

मेरा क्षेत्र आज भी पिछड़ा ही है। 5 वर्ष मेरठ में रहा हूँ, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई गांवों में गया हूँ, अच्छी सड़के हैं, नालियां हैं, अच्छी व्यवस्था है।

ये तस्वीर और वीडियो जो मैं शेयर कर रहा हूँ वो मेरी गांव से नौगढ़ (जिला मुख्यालय) को जोड़ती है, इसकी खास बात ये है कि जहाँ कि ये तस्वीर है वो सड़क विधायक राही जी के आवास से 1 किमी अंदर की है।

सोंहस चौराहे की, वहां से विधायक जी रोज ही गुजरते हैं फिर भी हालात जस के तस हैं। गांव की सड़कों की बात अभी नहीं करेंगे।

फ़ोटो और वीडियो में एक सड़क पर कुछ काम हो रहा है वो विधायक जी के दरवाज़े के पास का है।
कुछ क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ता को को टैग कर रहा हूँ ताकि वो मेरी बात विधायक जी तक पहुंचा सकें। इस तरह के स्वार्थी नेता मजबूर कर रहे है कि हम नोटा की तरफ जाएं।

(लोकल डिब्बा के लिए विशाल अरुण मिश्र की रिपोर्ट)