साल 2014 से पहले तक नीतीश कुमार एनडीए के लिए ब्रांड थे. अटल बिहारी वाजपेयी के बाद एनडीए नीतीश को चेहरा मान रहा था. आज हालात यूं हैं कि नीतीश खुद बिहार से हार सकते हैं. कभी एनडीए तो कभी विपक्ष से पीएम कैंडिडेट बनने की जुगत में लगे नीतीश का यह दिन भी आएगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो. लेकिन ये राजनीति है और राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं.
लोकल डिब्बा को फेसबुक पर लाइक करें।
सुशासन और विकास के नाम पर मशहूर नीतीश कुमार 15 साल में चुकते नजर आ रहे हैं. जनता कहने लगी है कि सिर्फ सुशासन से काम नहीं चलेगा. यही कारण है कि जिस आरजेडी और लालू से तंग आकर जनता ने नीतीश को जिताया था, वही लालू और उनकी पार्टी फिर से जीतती दिख रही है. इस सबका कारण है नौकरी, रोजगार और भ्रष्टाचार.
रोजगार का मुद्दा होगा तेज!
ठीक यही मुद्दे उत्तर प्रदेश में भी हावी हैं. योगी सरकार से पहले सपा सरकार में भी नौकरियों का मुद्दा अहम था. हालांकि, प्रतियोगी छात्र कहते हैं कि कम से कम उस जमाने में पैसा देने वालों को तो नौकरी मिल रही थी. अब आलम यह है कि केंद्र के साथ-साथ यूपी सरकार में भी नौकरियां नाम मात्र की निकल रही हैं. कभी परीक्षा देरी से होती है, तो कभी रिजल्ट नहीं आता. सब हो भी गया तो नियुक्ति पत्र नहीं मिलता. या फिर मामला कोर्ट चला जाता है.
सवालों को विपक्ष की साजिश बताना बड़ी गलती!
बिहार की ही तरह योगी सरकार इस मुद्दे को टाल रही है. योगी सरकार ठोस कदम की जगह पर रोजगार देने के अलग-अलग आंकड़े दिखाती रहती है. सीएम योगी ही कभी 22 लाख तो कभी 15 लाख रोजगार की बात करते हैं. कोरोना ने रोजगार की समस्या को और हवा दी है. प्रवासी मजदूरों और कामगारों को इस बार अहसास हुआ है कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने शहर में रोजगार का इंतजाम करे, जिससे उन्हें बाहर न जाना पड़े.
भारत में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना इतना चुनौतीपूर्ण क्यों?
पलायन रोकने से सुधर सकती है इकॉनमी
मेरा निजी तौर पर मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए पलायन रोका जाना बहुत जरूरी है. इससे होगा यह कि प्रवासी मजदूरों का भी कमरे का किराया और दूसरे शहर में ट्रैवल करने का पैसा बचेगा, जोकि वार्षिक स्तर पर काफी ज्यादा है. कुल मिलाकर स्थिति ऐसी बन रही है कि अगर बिहार की तरह यूपी की योगी सरकार न संभली और युवाओं के विरोध को विपक्ष की साजिश बताती रही तो उसका भी बुरा ही होगा.
बिहार में तो नीतीश कुमार की लोकप्रियता काफी ज्यादा थी. वह खुद अपने नाम पर चुनाव जीतते रहे थे. यूपी में योगी आदित्यनाथ न तो उतने चर्चित हैं. ना ही यूपी में बीजेपी को मिला मैंडेट उनके नाम पर है. पिछले कुछ दिनों में उनकी सरकार पर एक ही जाति को सपोर्ट करने के भी आरोप लगे हैं. ठीक ऐसे ही आरोप अखिलेश और मायावती की सरकार पर भी लगे और काम करने के बावजूद दोनों हारकर बाहर हुए.
यूपी में मौजूद है विकल्प
बिहार में तेजस्वी नए हैं. उनकी पार्टी पर गुंडाराज के आरोप लगे हैं. इसके बावजूद उनकी स्थिति मजबूत दिख रही है. यूपी में अखिलेश यादव की निजी छवि साफ और काम करने वाले नेता की रही है. ऐसे में यूपी की जनता के पास विकल्प की भी कमी नहीं है. कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ की सरकार के लिए जरूरी है कि आने वाले एक-डेढ़ साल में नौकरियां देने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए गंभीरता से काम किए जाएं.