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यह प्यार नहीं बाबू, वेल प्लान्ड फ्यूचर इन्वेस्टमेंट है!

साल 2010 की बात है। तब पर्सनल फोन का चलन नहीं हुआ करता था। घर में इकलौता नोकिया का सेट था, जो पूरे दिन मोबाइल स्टैंड में पड़ा रहता। फोन आता तो माँ उठातीं, प्रेरणा से बात करनी है आंटी, यह सुनकर वो फोन मेरी तरफ बढ़ाती थी। चूंकि हमें फोन उठाने की इजाज़त नहीं थी इसलिए जब मां शाम को मंदिर जाती तो मैं ‘उसे’ फोन किया करती थी। उसके घर का भी यही हाल था। सो मुझे लड़कों की आवाज़ निकालनी पड़ती थी। किसी दोस्त ने फोन किया है, यह कहते हुए फोन उसकी तरफ बढ़ता। फिर हम, तुम क्या कर रही हो आकांक्षा? और वो, तुम क्या कर रहे हो अभिषेक? कह कर एक दूसरे से डेढ़ दो मिनट तक बात किया करते थे।

वो लड़का था। मैं लड़की। वो मुसलमान था। मैं हिन्दू। इस कहानी में प्यार का इज़हार एक लड़की ने किया था। क्लास में बैठे वो ढीठ जैसी उसको निहारती और वो असहज होता रहता। लड़के कहते तेरी तो मौज है लेकिन लड़की को कोई फर्क नहीं पड़ता। वो उससे शादी करने के सपने सजाती। उस 14साल की लड़की की हिम्मत को याद कर के मैं आज भी हैरान रह जाती हूं लेकिन फिर यह ख्याल भी आता है कि जिसे ऑनर किलिंग, लव जिहाद, हिन्दू, मुस्लिम, बाभन, चमार की रत्ती भर समझ नहीं थी, उस लड़की से भला क्या ही उम्मीद की जा सकती है।

एक दिन मेरे घर के फोन की घंटी बजी। फोन उठाने वाले थे पापा। उन्होंने लड़के की आवाज़ सुनी और फिर सवाल पर सवाल दागने लगे। क्या नाम है? कहाँ रहते हो? ग़लती से कैसे लग गया फोन?
जवाब आया, अंकल मैं राम। हनुमान नगर में रहता हूं और अपने एक दोस्त को फोन कर रहा था। पापा तुरंत ही हनुमान नगर के लिए निकल गए। सच कहूं उस दिन लगा शामत आ जाएगी लेकिन एक व़क्त के लिए भी दिल में ये ख्याल नहीं आया कि अब रिश्ता खत्म ।

हमारा प्यार क्या ही था? एक दूसरे को देखना, मुस्कुराना, स्कूल से थोड़ी दूर तक साथ-साथ चलना और दबी आवाज़ में आई लव यू बोलना! छोटे शहर का प्यार ऐसा ही तो होता है। हज़ार पहरों के बीच प्यार पनपता है और उन्हीं हजार पहरों की बीच उसकी हत्या भी हो जाती है। मेरे प्यार की हत्या कर दी गई क्योंकि प्यार को जिंदा और जवां रखने के लिए हिम्मत चाहिए। नून रोटी, मांड़ भात खाने की हिम्मत, जान गंवा सकने की हिम्मत। ज़हर खा लेने की हिम्मत। घर से भाग सकने की हिम्मत। ये कहने की हिम्मत की मेरे मां-बाप से मुझे अब कोई मतलब नहीं। जिऊंगी तो इन्हीं के साथ मरुंगी भी तो इन्हीं के साथ।

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प्यार हम आप जैसे प्रैक्टिकल लोग नहीं कर सकते। हम उस लड़की पर केवल हंस सकते हैं क्योंकि वह छोटे शहर से है। उसकी भाषा छोटे शहर वाली है। उसका प्रेमी छोटे शहर का है और वो हर बात के अंत में ‘ठीक है’ बोलती है।उसके प्यार का मुकम्मल होना केवल दो जिस्मों का एक होना नहीं है। बल्कि वो सात फेरे और सिंदूर में विश्वास रखती है। वो हमारी तरह इस विषय पर विमर्श नहीं कर सकती। वो हमारी तरह बेहतर भविष्य, अच्छा पैसा, बैंक बैलेंस, ख़ूबसूरती और स्टैंडर्ड मैच करने के बारे में नहीं सोचती है।

हंसने वाले साथी, हमारा आपका प्यार, प्यार नहीं है। यह वेल प्लान्ड फ्यूचर इंवेस्टमेंट है। इसे प्यार का नाम देकर प्यार की तौहीन ना करिए।


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