21 जुलाई 2018. राजस्थान का अलवर जिले में 28 साल के रकबर खान की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. भीड़ को शक था कि वह कथित तौर पर गो तस्करी कर रहे थे. इस मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है, तीन की पहचान कर ली गई है. पुलिस ने दिलासा दिया है कि आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
दिलासा देना सरकार और प्रशासन का राष्ट्रीय कर्तव्य है. दिलासा देने का मौसम चल रहा है.
समाचार वेबसाइट फर्स्टपोस्ट के मुताबकि अब तक 2014 से मार्च 2018 के बीच 45 लोगों की भीड़ ने हत्या कर दी है. 217 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, चालीस केस दर्ज हुए हैं लेकिन इनका आधिकारिक आंकड़ा सरकार के पास कहीं भी दर्ज नहीं है.
बात शुरू करने से पहले आइए देखते हैं कि केवल राजस्थान में कितने लोगों की मौत गाय की तस्करी के शक में हुई है. वरिष्ठ पत्रकार देबायन रॉय की रिपोर्ट के मुताबिक 16 जून, 2017 को राजस्थान के ही प्रतापगढ़ में जफर इस्लाम को भीड़ मार डालती है. 30 मई 2015 राजस्थान के बिरलोका इलाके में अब्दुल गफ्फार कुरैशी को भीड़ मार डालती है. भीड़ को कहीं से सूचना मिलती है कि मांस के कारोबारी गफ्फार बीफ का व्यापार शुरू करने वाले हैं. राजस्थान के दांतल में सितबंर 2017 में अहमद खान की हत्या कर दी जाती है.
फहारी में 12 नवंबर, 2017 को उमर मुहम्मद की हत्या, अलवर में जनता कालोनी के पास तालिम हुसैन की 6 दिसंबर 2017 को हत्या हो जाती है. मोहम्मद अफराजुल को राजसमंद में 7 दिसंबर 2017 को पीट-पीटकर मार डाला जाता है.
यह सभी घटनाएं अकेले एक राज्य राजस्थान की हैं. ऐसी कई घटनाएं देश के अलग-अलग जगहों से आए दिन सुनने को मिल रही हैं. केंद्र सरकार अब जाकर ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन कर रही है. समिति है, खुश न हों, यह कोई कानून नहीं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश भी नाकाफी हैं इन घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए. आईपीसी में कहीं कोई ऐसी धारा नहीं है जो मॉब लिंचिंग को स्पष्ट करती है.
जब भीड़ बेलगाम हो तो उसके शांति प्रिय होने की उम्मीद करना भी गलत है. भीड़ डरती नहीं है. धर्म के नाम पर उससे बाबरी विध्वंस भी कराया जा सकता और गोधरा कांड भी.
जमाना तेजी से बदल गया है. आरडीएक्स, अवैध अधियार रखने वाले को जमानत मिल सकती है, पैरोल पर रिहा हो सकती है लेकिन जिसके पास से गाय बरामद हो जाए उसका जाना तय है. गोरक्षक बनने की पहली और आखीर शर्त है मानुष भक्षक बन जाना.
हत्यारी भीड़ को लेकर जितनी कहावतें कही जा रही हैं सब सच साबित हो रही हैं. भीड़ हत्यारी ही है. अगर न होती तो उसी भीड़ में से आगे बढ़कर कोई चेहरा आता और मॉब लिंचिंग के खिलाफ हत्यारों से लड़ जाता. लेकिन भीड़ अपने आदत के अनुसार चुप रहती है और तमाशा देखती है.
शायद भीड़ के भीतर भी डर बस गया है कि अगर भीड़ ही भीड़ के खिलाफ बोलेगी तो भीड़ मार डालेगी. क्योंकि उग्रवादी भीड़, गांधीवादी भीड़ पर हमेशा भारी ही पड़ेगी. वैसे भी डर बड़ी चीज है.