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हैप्पी विमेंस डे (नियम व शर्तें लागू)

ब्रा, ब्रेस्ट और पीरियड्स की बात पर हम अचानक अपने आँख कान नाक खोल कर बैठ जाते हैं| फ्रीडम ऑफ़ स्पीच और फेमिनिज्म आजकल का हॉट टॉपिक है| ज़रा सा लड़कियों को घर टाइम पर आने को कहिये या कहिये की अपनी आरक्षित सीट पर किसी जरूरतमंद बूढ़े को बिठा दें, तो देखिये इन लोगों का फेमिनिज्म कैसे जाग जाता है|

विमेंस डे तो मौका होता ही है फेमनिस्ट और फेमिनिज्म की सारी थ्योरी लोगों को रटवा देने का| भले ही बात बात पर (मैन तो छोड़िये बतौर वीमेन भी)आपने लोगों को माँ-बहन की गालियों से ही क्यों न नवाज़ा हो|

लोग पता नहीं क्या समझते हैं ‘फेमिनिज्म’ शब्द से| फेमिनिज्म लड़कियों को समाज़ में लड़कों से बराबरी के सारे हकों, कपड़े पहनने की आज़ादी, घर वापसी के टाइम के कम और ज्यादा होने से कहीं परे है| फेमिनिज्म में एक पढ़ी लिखी लड़की की मांग से कहीं इतर उन घरेलु औरतों की कहानी है, जहाँ हर फैसले में वो हमेशा अपने पिता, पति और पुत्र के आगे झुकी नज़र आती हैं। औरतों के कष्ट ब्रा के बंधन से कहीं ऊपर हैं, जहाँ उन्हें आज भी बात बात पर कुल और समाज की मर्यादाओं से बांध दिया जाता है|

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फेमिनिज्म किसी एक्ट्रेस की क्लीवेज या ब्रेस्ट की फ़ोटो को विभिन्न मीडिया के द्वारा दिखाने की बहस से भी कहीं अलग है| जहाँ इसकी जड़ में आज भी विधवाओं का बाल मुंडन करा कर काशी और मथुरा भेजवाना जैसी असंख्य कुरीतियाँ हैं तो दुनिया के द्वारा ‘ब्यूटी विथ ब्रेन’ में भी ब्यूटी को चुनने का दर्द। आप पीरियड्स और सेनेटरी पैड्स पर खुल कर बात करना चाहते हैं, लेकिन आज भी भारत की आधी से ज्यादा लड़कियां और महिलायें लत्तों से सेनेटरी पैड तक सफ़र नहीं तय कर पा रहीं| उन्हें एक ढ़ंग का शौचालय तो नसीब नहीं हो पा रहा और आप सेनेटरी पैड्स के विज्ञापन में ब्लू की जगह लाल रंग दिखाने की बात कर रहे हैं|

शिक्षा के नाम पर बस वो अक्षरों से वाकिफ़ हो पाती हैं और आप बड़ी यूनिवर्सिटी में बैठे ढपली बजा-बजा कर उनके लिए समानता माग रहें हैं| कैसे करेंगे आप उनका वूमेन एम्पावरमेंट? सिर्फ फ़िल्में बना कर या दिखा कर? पर किसको? जो देख सकती है इन सिनेमाओं को उन्हें या उन्हें जिनके यहाँ एजुकेशन, इलेक्ट्रिसिटी और इन्टरनेट का ‘इ’ तक नहीं है?

सर और मैडम लोग, यहाँ की चकाचौंध में शॉर्ट्स या हाईट से लंबे कुर्ते पहन और चश्मा लगा कर सुट्टा मारते हुए फेमिनिज्म और इक्वैलिटी की बात करना बहुत आसान है| ज़रा जमीन पर आईये| रेप तो आपको उन दुर्गतियों में से एक दुर्गति दिखेगी| बाकी तो वही शुरुआत है जहाँ आपकी बेटी, बहन, माँ और पत्नी को ताने पर ताने दी जाते हैं,और फ़िर ज्यादा पढ़ लिख लेने और पैसे कमाने पर उनका चरित्र चित्रण किया जाता है।
इस पोस्ट को पढ़कर आपको लग सकता है कि हम महिलाओं के खिलाफ लिख रहे हैं लेकिन यहीं एक बारीक लाइन है जिसे अगर आप चूक गए तो कहीं और पहुँच जाएंगे।
आप हमारी बातों से सहमत हों या ना हों लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि लिखी गई बातों के बिना महिलाओं के हितों की रक्षा और उनको सम्मान नहीं दिया जा सकेगा।