भगत सिंह अपने लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ में एक तरफ खुद के नास्तिक हो जाने के कारणों को बताते हैं और यह भी स्पष्ट करते हैं कि उनकी नास्तिकता किसी अंहकार का नतीजा नहीं है। ईश्वर-अल्लाह या फिर गॉड को मानने वालों से भगति सिंह के कुछ सवाल हैं।
आइए कोशिश करिए कि जवाब बनता है या नहीं।
भगत सिंह पूछते हैं, ‘यदि, जैसा कि आपका विश्वास है, एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वव्यापी ईश्वर है, जिसने कि पृथ्वी या विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताएं कि उसने यह रचना क्यों की? कष्टों और आफतों से भरी यह दुनिया- असंख्य दुखों के शाश्वत और अनंत गठबंधनों से ग्रसित! एक भी प्राणी पूरी तरह सुखी नहीं!’
कृपया यह ना कहें कि यही उसका नियम है। यदि वह किसी नियम से बंधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं। फिर तो वह भी हमारी तरह गुलाम है। कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका शुगल है। ऐसे तो नीरो ने सिर्फ एक रोम जलाकर राख कर दिया था, उसने कुछ लोगों को हत्या की और अपने शौक-मनोरंजन के लिए थोड़ा बहुत दुख पैदा किया। आज इतिहास में उसका क्या स्थान है? उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते हैं? सारे विषैले विशेषण उस पर बरसाए जाते हैं।
एक चंगेज खां ने अपने आनंद के लिए कुछ हजार जानें लीं और आज सब उसके नाम से घृणा करते हैं। तब फिर तुम उस सर्वशक्तिमान अनंत नीरो को जो हर दिन, हर घंटे और हर मिनट असंख्य दुख देता रहता है और अभी भी दे रहा है, किस तरह न्यायोचित ठहराते हो? फिर तुम उसके दुष्कर्मों की हिमायत कैसे करोग, जो हर पल चंगेज के दुष्कर्मों को भी मात दिए जा रहे हैं?
क्यों बनाई दुनिया?
मैं पूछता हूं कि उसने अनंत वेदना के घर और नर्क समान ऐसा दुनिया बनाई ही क्यों थी? सर्वशक्तिमान ने मनुष्य का सृजन क्यों किया जबकि उसके पास ऐसा ना करने की ताकत थी? इन सब बातों के तुम्हारे पास क्या जवाब हैं? तुम यह कहोगे कि यह सब अगले जन्म में, इन निर्दोष कष्ट सहनेवालों को पुरस्कार और गलती करने वालों को दंडित करने के लिए हो रहा है। ठीक है लेकिन ये बताओ कि तुम कब तक उस व्यक्ति को उचित ठहराते रहोगे जो हमारे शरीर को जख्मी करने का साहस इसलिए करता है कि बाद में इस पर बहुत कोमल और आरामदायक मलहम लगाया जाएगा?
ग्लैडिएटर संस्था के व्यवस्थापकों और सहायकों का यह काम कहां तक उचित था कि एक भूखे-खूंखार शेर के सामने फेंक दो, यदि वह आदमी अपनी जान बचा ले तो उसकी खूब देखभाल की जाएगी? इसलिए मैं पूछता हूं, ‘उस परम चेतन और सर्वोच्च सत्ता ने इस विश्व और उसमें मनुष्यों का सृजन क्यों किया? आनंद लूटने के लिए? तब ईश्वर और नीरो में क्या फर्क है?’