दिल्ली का माहौल दमघोंटू हो गया है. दिवाली के बाद, पटाखों और आतिशबाजी के बाद. सुबह जब बाहर निकला तो लगा कि कुहासा है. शाम तक यही भ्रम रहा कि कुहासा है, हट जाएगा, लेकिन कुहासा हटा नहीं, डिगा रहा.
धुंध है, छंटता नहीं.
थोड़ी देर बाहर रहने के बाद खांसी ऐसी बढ़ी कि लगा दमा हो गया. मैं सिगरेट नहीं , कुछ भी ऐसा नहीं जिसका साइड इफेक्ट दिखे…लेकिन जितनी देर बाहर रहा, हालत खराब रही. सांस लेने में तकलीफ हो रही थी.
जिस हिसाब से दिल्ली पर प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है उस हिसाब से दिल्ली का माहौल दमघोंटू ही रहने वाला है. बेहद तकलीफदेह. हमने विकास के लिए जिंदा शहरों को कब्रिस्तान में बदलने में की पूरी तैयारी कर ली है. रत्तीभर जगह नहीं छोड़ने वाले हैं हम.
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पेड़ काट देंगे, जंगलों में घर बना लेंगे, गाड़ियां खरीदेंगे. हमारा वजूद इतना हल्का है कि बिना गाड़ी खरीदे हुए बढ़ता ही नहीं है, स्टेटस सिंबल.
देखिए क्या कहते हैं दिल्ली पॉल्यूशन के आज के आंकड़े-
दिल्ली में सोमवार सुबह के आंकड़े बेहद खराब रहे. दिल्ली की हवा 16 गुना ज्यादा जहरीली हो गई. एयर क्वालिटी इंडेक्स 306 दर्ज किया गया.
दिवाली पर सबसे चिंताजनक बात यह है कि दिवाली पर सबसे खतरनाक एयर पॉल्यूटेंट पीएम2.5 का स्तर तेजी से बढ़ा. दिवाली की रात आरके पुरम, सत्यवती कॉलेज, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम और पटपड़गंज में एयरक्वालिटी इंडेक्ट 999 के स्तर तक पहुंच गया था.
वैसे दिल्ली में इन दिनों हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने की वजह से दिल्ली में वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है. हर साल यही आंकड़े रिपीट होते हैं.
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कैसे करें कंट्रोल?
अरविंद केजरीवाल ऑड इवन फॉर्मूला लेकर आते हैं. प्रदूषण पर रोकथाम की बाते करते हैं, दिल्ली में पटाखों के कम इस्तेमाल की बात करते हैं, लेकिन प्रदूषण का स्तर संभलता नहीं. क्योंकि दिल्ली में हर तरफ धुआं ही निकलता है. बारिश हवा में मौजूद प्रदूषकों पर वक्ती राहत दे सकती है, हमेशा के लिए नहीं.
इसके लिए सबसे सुरक्षित उपाय है कि पेड़-पौधे लगाए जाएं. गाड़ियां कम चलाई जाएं, लोग पब्लिक सेक्टर व्हीकल का इस्तेमाल करें. इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियां मार्केट में आएं. अगर दफ्तर मेट्रो से जाया जा सकता है तो गाड़ियों का इस्तेमाल न किया जाए. छोटी-मोटी दूरी के लिए लोग पैदल चलें. सड़क पर जितनी कम गाड़ियां होंगी उतना ही कम प्रदूषण और जाम होगा.
साइकिल विदेशों में सारे बड़े लोग चलाते हैं, अपने यहां वीआईपी लोग गाड़ियों का काफिला लेकर चलते हैं. ऐसे में अगर लोग छोटी दूरी के लिए साइकिल चलाएं तो उनकी इज्जत कम नहीं हो जाएगी. पेट्रोल बचेगा, प्रदूषण कम होगा, पैसे भी बचेंगे. इतना काम तो किया जा सकता है. लेकिन यहां की दिक्कत ये है कि कुछ भी अच्छा करने से पहले लोगों का स्टेटस सिंबल प्रभावित होने लगता है.
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