मोदी जी! टॉयलेट, अस्पताल, स्कूल…अर्थव्यवस्था..कुछ न चंगा सी

आपका विजन क्या है?
भारत माता की जय।
आपका सिद्धांत क्या है?
राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, विश्व बंधुत्व…सनातन परंपरा.

आपकी शैली क्या है, आप अर्थव्यवस्था कैसे ठीक करेंगे?
पाकिस्तान के घर में घुसकर मारेंगे। पाकिस्तान को कटोरा पकड़ा देंगे। हमने 370 को खत्म कर दिया है। बालाकोट एयर स्ट्राइक किया है। दुश्मन गिड़गिड़ाने लगा है। अमेरिका जिगरी दोस्त बन गया है।

भारत खुले में शौच से मुक्त हो गया है। बहुत तेजी से हमारी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है। हम पाकिस्तान को घुटने टोकने पर मजबूर कर देंगे। सारे पब्लिक सेक्टर यूनिट्स को प्राइवेटाइजेशन में झोक देंगे। बीएसएनल साइडलाइन होगा, जियो, वोडाफोन, एयरटेल छा जाएंगे।

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और?
चीन वाले को हमने कहा कि अपनी सीमा में रहे।।।अपना काम करे। इधर ताक-झांक न करे। सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करने देंगे। कुछ गलत नहीं होने देंगे। एशिया के दादा हैं, क्योंकि राफेल खरीद लिया है हमने।

और ग्रामीण भारत?
बताया तो टॉयलेट मुक्त हो गया है भारत।

नहीं, बिलकुल नहीं। फगुनिया आज भी लोटा लेकर निकलती है, सुबह-सुबह घर से। प्राइमरी स्कूल वाली सड़क को दोनों और टट्टी की बौछार रहती है। खेत के चकरोड पर पांव बचाकर चलना पड़ता है कि कहीं पांव में मल न लग जाए।

अच्छा स्कूल कैसे हैं?

सब चंगा सी।

लगता तो नहीं है। गांव का प्राइमरी आज भी पियक्कड़ों का अड्डा है। बच्चे आज भी चटाई पर बैठते हैं। कंप्यूटर, मोबाइल वाले जमाने में बोरी बिछाकर बैठे हुए बच्चे सीटों से महरूम हैं। पढ़ाई भी राम भरोसे है।

बदहाल जिसे कह सकते हैं। अंग्रेजी बेहद जरूरी है लेकिन सही से हिंदी बोलने वाले बच्चे नहीं मिलेंगे। सोच के देखिए।।जहां बच्चों को एसी वाले रूम दिए जा रहे हैं, प्राइवेट स्कूल बच्चों के परिवारों का शोषण भी इस आधार पर करते हैं कि उन्हें सुविधाएं दी जाती हैं।

वहां पढ़ाने वाले शिक्षक भले ही कुछ हजार पाते हैं, जिससे जिंदगी घिसट सकती है, चल नहीं सकती वहां स्कूलों के पास अथाह पैसा है।

या तो सरकारें मानकर चलती हैं कि इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे बिलकुल स्तरहीन लोग हैं, जिनका अधिकार अच्छी शिक्षा।।।अच्छी सुविधाओं पर नहीं है। घर अगर छप्पर वाले हैं, तो स्कूल में कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हाईटेक मिल जाएगा।

हाल तब ऐसा है जब शिक्षा हमारे यहां फंडामेंटल राइट्स में से एक है। प्राइमरी स्कूलों की हालत देखिए।।।।अंदाजा लग जाता है कि वहां कैसी पढ़ाई होती होगी।
पढ़ाने वाले लोग कैसा पढ़ाते हैं यह जानने के लिए किसी स्कूल में जाइए।

गिनती के लोग होंगे, जिन्हें पढ़ाना आता है। कभी उनसे हिंदी लिखवाइए। सौ गलतियां करेंगे। कुछ करंट अफेयर्स पर पूछिए, शायद बिलकुल न बता पाएं। जो जानते होंगे, वे पीसीएस या आईएएस की तैयारी कर रहे होंगे, जिन्हें भागना है, स्वार्थ इतना है कि प्राइमरी स्कूल से पैसे आ जाएंगे, खर्चा निकल जाए….बच्चे भाड़ में जाएं।

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कितना खराब लगता है कि बीएड और एमएड करके, कठिन परीक्षा पास करके आए हुए लोगों के पास विजन के नाम पर कुछ नहीं होता है। 30 और 31 तारीख की सैलरी से ज्यादा नौकरी से कुछ मतलब नहीं होता। रिजल्ट ये निकलता है कि प्राइमरी में पढ़ने वाला बच्चा बड़ा होकर खुद को स्थापित करने की लड़ाई…….लड़ाई से पहले ही हार जाता है।

ये हालात सिर्फ स्कूलों के नहीं हैं। अस्पतालों की ओर देखिए। भीड़, बेबसी, बेचारगी सब एक साथ नजर आएगी। हालात सच में अच्छे नहीं हैं। कई बार लगता है कि सरकार सिर्फ औपचारिकताएं पूरी करने के लिए होती है। जानबूझकर पब्लिक सेक्टर को डाउन कर दो, जिससे लोग प्राइवेट सेक्टर की ओर भाग जाएं।

सोचकर देखिए….जहां प्राइमरी स्कूलों में लोग इसलिए लोग टीचर बनना चाहते हैं कि वहां आराम हैं, सरकारी नौकरी इसलिए लोग करना चाहते हैं क्योंकि वहां छंटनी का डर नहीं है…घूस है, पैसे हैं….वहां बेहतर सुविधाओं की उम्मीद भी करना पाप है..।

मोदी जी…स्कूल..अस्पताल….नौकरी…अर्थव्यवस्था….कुछ न चंगा सी…।।।।

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