बहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना
फ़लक से तोड़कर क़िस्सा ज़मीनी तौर पर कहनाबहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना. किसे चाहें किसे मानें किसे छू लें किसे...
जहां बातें होंगी हिंदी इस्टाइल में
फ़लक से तोड़कर क़िस्सा ज़मीनी तौर पर कहनाबहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना. किसे चाहें किसे मानें किसे छू लें किसे...
हर सरहद को तोड़ ही देगी आज़ादी दुनिया भर को घर कर देगी आज़ादी. दिल में रह-रह मौज उठेगी आज़ादी जान तो इक दिन लेके...
अब नहीं हैं प्रणययार्थी, न उनकी गणिकाऐं, वो गदिराए बदन भी नहीं हैं जिनपर लिख सको कामसूत्र जैसा ग्रंथ
तुम ज्ञान के लिए यात्राएँ क्यों करोगे जब तुम्हारे हाथ में किताबें हैं जिनमें लिखे हैं यात्राओं के विवरण
इसी इक मोड़ पर अक्सर गिरा जाता है ऊंचाई से अपनी ज़ात और ख़ाका मिटाया जाता है सब कुछ हो जिसमें ये सिफ़अत, क़ूवत कि जो अपना सके, जो घोल पाये सब कुछ अपने में
ग़मे-दिल और ग़मे जानां कहे बिन सह सके जो सब किसी इतनी बड़ी हस्ती के पहलू में किया जाता है सब कुछ गुम.
फिर से हम जिन्दा लाशें,अपने मरे हुए सपनों से, नाउम्मीदी ओर जिल्लत की जिंदगी सेफिर से हम आपके रुके हुए शहर को चलना सिखाएंगे,फिर से आपकी जिंदगी खुशनुमां बनाएंगे.
माना अपने गांव में, रहता बहुत कलेस। कुल पीड़ा स्वीकार है, ना जाइब परदेस।
डर से निजात पा चुकीं, जीने को मरने आ चुकीं, धरने पे मुल्क ला चुकीं, ज़िद इनकी है बहाल, सलाम..
आप की याद भी बस आप के ही जैसी है,
आ गई यूँही अभी यूँही अभी जाती है।
माथे पे लिखी मेरी रुसवाई नहीं जाती… जब भूख लगी तब मैं, या प्यास लगी जब तब मैं हाथ लगी अक्सर, बस मांस लगी जब...