मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है

मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है,
ज़िंदगी यूँही कटी यूँही कटी जाती है।

अपनी चादर में उसे खेंच लिया लिपटे रहे,
चाँदनी यूँही छूई यूँही छूई जाती है।

भीगी आँखों से कभी भीगे लबों से हो कर,
शायरी यूँही बही यूँही बही जाती है।

इश्क़ उस से भी किया तुम से भी कर लेते हैं,
बंदगी यूँही हुई यूँही हुई जाती है।

आप की याद भी बस आप के ही जैसी है,
आ गई यूँही अभी यूँही अभी जाती है।

(ग़ज़ल के समृद्ध हस्ताक्षर भवेश दिलशाद, पेशे से पत्रकार हैं. देश में अदब की दुनिया के बेहद चर्चित शायरों में से एक. पढ़ें उनकी ग़ज़ल, ज़िंदगी यूँही कटी यूँही कटी जाती है)