मिलती मुद्दत में है और पल में हँसी जाती है
आप की याद भी बस आप के ही जैसी है,
आ गई यूँही अभी यूँही अभी जाती है।
जहां बातें होंगी हिंदी इस्टाइल में
आप की याद भी बस आप के ही जैसी है,
आ गई यूँही अभी यूँही अभी जाती है।
कभी तो सामने आ बे-लिबास हो कर भी, अभी तो दूर बहुत है तू पास हो कर भी. तेरे गले लगूँ कब तक यूँ एहतियातन...
दुष्यंत चले गए. उनकी ग़ज़लें अमर हैं. जिन्होंने दुष्यंत कुमार को नहीं देखा, वे एहतराम साहब से मिल सकते हैं. एहतराम इस्लाम, हिंदी ग़ज़ल के...
मेरे गांव में जुम्मन यादव होते हैं रघुवीर खान क्योंकि मेरा गांव हिन्दू मुसलमान नहीं जानता
काश के मेरा नाम इश्क़ होता तुम्हारा नाम भी इश्क़ होता क्या होता जब सबका नाम इश्क़ होता। हम जिस देश में रहते उस देश...
हर किसी की जिंदगी के समानांतर एक और जिंदगी होती है और यह सबको दिखाई नहीं देती । यह जिंदगी का एक दूसरा रंग होता...