अग्नि वर्षा है तो है हां बर्फ़बारी है तो है

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दुष्यंत चले गए. उनकी ग़ज़लें अमर हैं. जिन्होंने दुष्यंत कुमार को नहीं देखा, वे एहतराम साहब से मिल सकते हैं. एहतराम इस्लाम, हिंदी ग़ज़ल के चर्चित चेहरे हैं. देश भर लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनकी ग़ज़लें प्रकाशित हो गई हैं. ग़ज़ल में हिंदी का जैसा प्रयोग एहतराम साहब ने किया है वैसा कहीं और देखने को नहीं मिलता.
एहतराम की क़लम बग़ावती है. सरकार के लिए इनकी विधा में आलोचना ही आती है. वही तेवर जो दुष्यंत में थे, लेकिन उनसे एहतराम कुछ क़दम आगे हैं. पढ़ें आज एहतराम इस्लाम की ग़ज़ल, ‘है तो है.”

अग्नि वर्षा है तो है हाँ बर्फ़बारी है तो है,
मौसमों के दरमियाँ इक जंग जारी है तो है ।

जिंदगी का लम्हा लम्हा उसपे भारी है तो है,
क्रांतिकारी व्यक्ति कुछ हो क्रांतिकारी है तो है ।

मूर्ति सोने की निरर्थक वस्तु है उसके लिए,
मोम की गुड़िया अगर बच्चे को प्यारी है तो है ।

खूँ- पसीना एक करके हम सजाते हैं इसे,
हम अगर कह दें कि यह दुनिया हमारी है तो है ।

रात कोठे पर बिताता है कि होटल में कोई,
रोशनी में दिन कि मंदिर का पुजारी है तो है ।

अपनी कोमल भावना के रक्त में डूबी हुई,
मात्र श्रद्धा आज भी भारत की नारी है तो है ।

(फोटो- एहतराम इस्लाम)

हैं तो हैं दुनिया से बेपरवा परिंदे शाख़ पर,
घात में उनकी कहीं कोई शिकारी है तो है ।

आप छल-बल के धनी हैं जीतिएगा आप ही,
आपसे बेहतर मेरी उम्मीदवारी है तो है ।

देश के सम्पन्नता कितनी बढ़ी है, देखिए,
सोचिए क्यों ? देश की जनता भिखारी है तो है ।

दिल्लियों अमृतसरों की भीड़ में खोई हुई,
देश मे अपने कहीं कन्याकुमारी है तो है ।

“एहतराम” अपने ग़ज़ल-लेखन को कहता है कला,
आप कहते हैं उसे जादूनिगारी, है तो है ।

– एहतराम इस्लाम.

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