डिजिटल होती दुनिया और टेक्नोलॉजी के इस दौर में सब कुछ बहुत तेज़ी से बदल रहा है. स्मार्टफोन के मॉडल से लेकर एंड्राइड OS इतनी तेजी से अपडेट हो रहे हैं. इतनी तेज़ी से तो घर के बच्चे भी बड़े नहीं होते. दस में से साढ़े नौ जेब में टुनटुनाने वाले शियोमी के स्मार्टफोन की बात करें तो मादा मच्छर साल में उतने अंडे नहीं देती जितने स्मार्टफोन ये कंपनी एक महीने में फोन लॉन्च कर देती है. ऐसे में तकनीक की रफ्तार का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है.
21वी सदी और बदलाव के इस दौर में शायद दशकों पुरानी कहावत ‘उड़ता तीर लेना’ को भी एंड्राइड के प्रीवियस वर्ज़न की तरह की अपडेट करने का वक्त आ गया.
एक समय था राजाओं को शिकार का शौक हुआ करता था और वो तीर कमान थाम शिकार को निकाल पड़ते थे. अब तो न राजा हैं और न वैसे तीर. और रही बात शिकारी की तो काले हिरण के शिकार के बाद जब ‘भाई’ ने तीर-भाले-बंदूक सबसे से तौबा कर ली है तो अब शायद ही कोई ऐसे शौक पालेगा. ऐसे में तीर से मारने की प्रथा तो लगभग खत्म हो चुकी है लेकिन तीर लेने की रिवाज़ अभी भी जारी है.
दशकों पुरानी इस कहावत को सदियों तक धकेलते रहना, शायद हमारी अगली पीढ़ी के साथ नाइंसाफी होगी. ऐसा में जरूरी है ‘उड़ता तीर लेना’ को बदलकर वर्तमान स्थिति के अनुसार ‘उड़ता जेट लेना’ कर देना चाहिए.
ऐसे इसलिए भी जरूरी है क्योंकि देश की राजनीति पर बैठी प्रमुख पार्टियां आज खुद अपने-अपने ‘तीर’ से घायल हैं. कुछ समय पहले तक Agustawestland मुद्दे पर निशान साध विपक्ष को लहूलुहान करने वाला सत्ता पक्ष आज Rafale मुद्दे पर खुद रामायण के लक्ष्मण किरदार की तरह मूर्छित होकर पड़ा है.
मुश्किल ही इस घड़ी में ‘पाकिस्तान का हाथ’ नाम की संजीवनी ही है जो पार्टी में दोबारा जान फूंक सकती है. ऐसे में कैबिनेट में मौजूद हर संकटमोचन ने अपनी पुरज़ोर प्रयास शुरू कर दिया है. ताकि जल्द से जल्द मूर्छित लक्ष्मण को होश में लाया जा सके.अपने ही तीर से लगी सियासत की ये चोट कितना गहरा जख्म देगी, इसका अंदाज़ा फिलहाल तो लगाना थोड़ा मुश्किल है.
खैर, राजनीति इस उहापोह को दरकिनार कर एक बात पर गौर करें तो पाएंगे और किसी का तो नहीं पता लेकिन बीते कुछ सालों में हिंदी और अंग्रेज़ी का ‘विकास’ तेज़ी से हुआ है. भाषा के क्षेत्र में Demonetization, असहिष्णुता, Lynching जैसे शब्दों का अभूतपूर्व योगदान है. ऐसे में दशकों पुरानी कहावत ‘उड़ता तीर लेना’ को बदलकर ‘उड़ता जेट लेना’ भी एक बड़ी सफलता होगी.
(यह आलेख प्रशांत ने अपने ब्लॉग पर लिखा है. उनके ब्लॉग पर जाने के लिए यहां क्लिक करें.)