गांव आज भी धर्म नहीं समझ पाते तभी जुम्मन यादव होते हैं और रघुवीर खान

आज गांव गया था, गांव देखने, इसलिये फोन लेकर नहीं गया, ले जाता तो हो सकता था कुछ तस्वीरें खींचता और सबको दिखाता कि देखो गांव क्या होता है। ऐसा करने का कोई इरादा नहीं था और स्वांतः सुखाय की भावना घर कर गई थी, इसीलिये फोन जानकर नहीं ले गया। सच में आज गांव देखकर आया हूं। वहां जाकर देखा कि धान और गेंहूं में क्या फर्क होता है।

गांव जाकर ही देखा कि चने का झाड़ नहीं होता, बल्कि छोटा-सा पौधा होता है। मटर का पौधा भी देखा, जिनमें फली लगनी शुरु हो गई है, शायद अगले दस दिनों में खाने लायक हो जाये। मटर के पौधे में जहां फली लगती है, वहां पर मटर की मूँछें होती हैं। गन्ने से गुड़ बनते हुये भी देखा और खाया भी। खेतों में सिंचाई कैसे करते हैं, ये भी देखा। बसंत अभी आया नहीं, इसलिये सरसों पर फूल नहीं आये। चने में फल कब तक आयेंगे, ये तो नहीं पता, लेकिन उसमें साग जरूर लग गया है।

गांव में सबसे राम-राम हुई बिना किसी भेदभाव के जाति और धर्म जाने बिना। सबको राम-राम करते हुये भूल गया कि एक मुसलमान को भी राम राम बोल दिया। हुआ ये कि मुझे नाम नहीं पता थे। और जब बोल दिया और नाम पता चला तो समझ आया कि अगर पता भी होता तो क्या होता उनका नाम ही रघुवीर है और धर्म मुसलमान(बाद में पता चला)।

गांव की महिलायें बहुत खूबसूरत होती हैं बिना किसी मेकअप के। ज्यादातर महिलायें खेतों पर थीं, लेकिन जब शाम हुई और घर लौटने का वक्त हुआ, तब सब जिनके खेत मेरे खेतों की तरफ थे सबने जानवरों के लिये चारा लिया और घर की तरफ चल दीं। बिल्कुल सीधी रेखा में। हँसते बोलते गाते हुये चली जा रहीं थीं। बच्चे अभी भी गलियों में साइकिल के पुराने पहिये दौड़ाते हुये आसमान छू रहे थे। कुछ आँख-मिचौली खेलते हुये मिले। कुछ लड़ रहे थे, क्योंकि किसी ने उनके कंचे (चिरन्गे) चुरा लिये थे।

गांवों में लोग कम बचे हैं। जवान पीढ़ी लगभग पूरी गायब है। मुझे आज मेरी उम्र का कोई भी नहीं मिला। सब बाहर गये हुये हैं पैसा कमाने के लिए। गांवों के इस खालीपन ने बहुत निराश किया। बहुत देर तक गांव के उन पुराने दोस्तों को खोजता रहा, जिनके साथ बड़ा हुआ।
पुराने सभी अड्डों पर गया कि कोई तो मिलेगा। तालाब के किनारे वाले मन्दिर पर जाकर देखा तो सब धर्म की पताका फहराने के लिये जान देने तक को तैयार हैं। मन्दिर का अहाता हमारे लिये खेलने की जगह थी, आज राजनीति का अखाड़ा है। गांव की खाक छानने पर जो दिखे, वो सब अंजान थे, शायद हमारी बाद वाली पीढ़ी है, जो टीवी और फोन के दौर में बड़ी हुई जिसका हमसे फेसबुक पर मिलना-जुलना तो है, लेकिन सामने आने पर भैया आप कहां से आये पूछते हैं।