बुर्क़े हटा के आ गयीं, घूंघट उठा के आ गयीं, ये औरतें कमाल..

दुनिया के बेशुमार सलाम
इन हसीनाओं हव्वाओं के नाम
ख़ुश आमदीद एहतराम..

बुर्क़े हटा के आ गयीं
घूंघट उठा के आ गयीं
परदे जला के आ गयीं
ये औरतें कमाल, सलाम..

सड़कों पे हैं ये साथ में
मुद्दे हैं इनकी बात में
जागी हुई हैं रात में
सुब्ह का इनको लाल सलाम..

माँएं हैं बेटियां भी ये
सखियां हैं बीवियां भी ये
बहनें हैं नानियां भी ये
धधकी हैं कि मशाल, सलाम..

डर से निजात पा चुकीं
जीने को मरने आ चुकीं
धरने पे मुल्क ला चुकीं
ज़िद इनकी है बहाल, सलाम..

कितनी हसीं ये औरतें
अज़्मो-यकीं ये औरतें
मिस्ले-ज़मीं ये औरतें
सब कुछ रहीं संभाल, सलाम..

शाहीन जैसे बाग़ में
लपटें उठें चिराग़ में
चीख़ें हर एक दाग़ में
नारे फ़िक़्रो-ख़याल, सलाम..

हफ़्ते महीने गिन रहीं
कबसे ये औरतें यहीं
बोलीं हटेंगी ये नहीं
क़ायम हैं बिन बवाल, सलाम..

जन्नत कोई नहीं है दोस्त
है तो फ़क़त यहीं है दोस्त
ऐसा जुनूं कहीं है दोस्त
ईमां है शर्ते-हाल, सलाम..

कागज़ नहीं दिखाएंगी
सर भी नहीं झुकाएंगी
परचम ज़रूर उठाएंगी
करतीं बड़े सवाल, सलाम..

कुछ ख़ास हो रही हैं ये
विश्वास हो रही हैं ये
इतिहास हो रही हैं ये
कल के लिए मिसाल, सलाम..

सरकारें लाजवाब हैं
ये अब भी कामयाब हैं
जम्हूरियत का ख्वाब हैं
औरतें ये बेमिसाल, सलाम..

शाहीनबाग में धरने पर बैठीं महिलाएं (तस्वीर- पीटीआई)

भारत का ही बयां नहीं
फैली हैं ये कहां नहीं
मर्दों के इस जहान में
कुछ कुछ मगर अयां नहीं

धूपों की खुश्क छांव में
अफ़ग़ान गांव गांव में
मुल्तान में लहौर में
ऐसे ही शहरों और में

ये औरतें कतार में
तुर्की के भी दयार में
वुस्अत है हांगकांग तक
शंघाई से गुआंग तक

पेरिस से लेके मैड्रिड
अमरीका हो या प्राग हो
कोना है कौन सा जहां
आधा जहां न आग हो

इरानो-मिस्र से इधर
फैली हैं कोरिया तलक
हैं ये ज़मीं की औरतें
हसरत से देखता फ़लक़

बच्चों के कल की खैरियत
जम्हूरियत ओ शहरियत
आवाज़ चाहती कहीं
परवाज़ खोजती कहीं

पूरे बदन पे नील हैं
फिर भी ये संगे मील हैं
सुब्हें कहीं तो शाम बंद
हक़ के लिए हैं लामबंद

सब आम और ख़ास तक
इज़्ज़त से ये लिबास तक
लड़ने लगी हैं बार बार
वजहें हैं इनकी सौ हज़ार

बहरे सुनें दिमाग़ से
दिल से नहीं तो जान से
ईमान हैं ये औरतें
हक़दार पूरी शान से
लाज़वाल बेमिसाल
औरतें ये बाकमाल, सलाम.

(फाइल फोटो- भवेश दिलशाद)

(भवेश दिलशाद ने यह नज़्म लिखी है. औरतों के नाम उनकी यह चिट्ठी समझिए. भवेश दिलशाद उर्दू के महबूब शायर हैं. अदब की दुनिया के जाने-पहचाने नाम हैं. युवा इन्हें पढ़ते हैं, गुनगुनाते हैं. इश्क़ लिखने वाले प्यारे शायर की तरफ से देश की तमाम औरतों को प्यारा सा कृतज्ञता पत्र.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *