बस स्टॉप पर खड़े हुए काफी वक़्त हो गया था, वहां बहुत से लोग बस का इंतज़ार कर रहे थे, मै भी उन लोगों में से एक था।
मै बहुत देर से नोटिस कर रहा था, मेरे कुछ दूर पर खड़ी एक लड़की जो कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी, बहुत वक़्त से कुछ बेचैन सी थी, शायद कोई दिक्कत थी उसे।
मुझे बार-बार ये एहसास हो रहा था कि वो मुझसे कुछ कहना चाहती थी, शायद वो मुझे अच्छे से पहचानती भी थी।
उसने आख़िरकार मुझसे आ कर बोल ही दिया, “आप विजयनगर कॉलोनी में रहते हो ना?”
मैंने बोला, “हाँ मै वही रहता हूँ.”
उसने बोला, मैंने आपको देखा है वहां।
मैंने उससे कहा, तुम्हे क्या कोई परेशानी है, बहुत देर से देख रहा हूँ कुछ परेशान लग रही हो।
उसने तपाक से जवाब दिया, “आप ये जानते हुए भी कि मै बहुत परेशान हूँ, अकेली हूँ, फिर भी मुझसे नहीं पूछा।”
मैंने शालीनता से जवाब दिया, “देखो मै तुमसे या किसी भी लड़की से पहले उसकी परेशानी पूछ के उसे बेबस या लाचार महसूस नहीं कराना चाहता, क्योंकि तुममे वो क्षमता है कि तुम अपनीं परेशानी को खुद दूर कर सको, तुम बेशक़ एक लड़की हो लेकिन बेबस नहीं।
अगर तुम्हे लगता है कि तुम्हे किसी के हेल्प ज़रूरत है तो बेझिझक कहो।
मैं तैयार हूँ, तुम्हारी मदद करने के लिये लेकिन एक बेबस महिला की तरह नहीं बल्कि एक आम इंसान की तरह।
उसने मुस्कुरा कर मुझे जवाब दिया,”आपका दिल से धन्यवाद आपने मेरी आधी मदद तो कर ही दी, बाकि मै खुद ही करना चाहूंगी।”