एक इंसान किसी गन्दगी के ढेर को साफ़ करने का संकल्प ले कर जाता है और गन्दगी के ढेर की सफाई करते-करते अचानक उसी ढेर में गिर जाता है और गन्दगी के छीटे उसके ऊपर भी पड़ जाते हैं, अब वो इंसान तिलमिला कर वहां से निकलता है और अपने शरीर की गन्दगी साफ़ करता है। अपनी गन्दगी साफ करने के बाद गन्दगी के ढ़ेर को देखते हुए किनारे खड़ा होकर वो विचार करता है, “सफाई अभी मैंने शुरू ही की थी की इस गन्दगी ने मुझे गन्दा कर दिया, फिर वो तुरंत फैसला भी ले लेता है, “छोड़ो अब कौन जाये इस गन्दगी में फिर से गन्दा होने” और गन्दगी का ढेर वैसे का वैसे ही पड़ा रह जाता है।
यही इस समाज के अधिकांश लोगों की भी सच्चाई है। हम खुद बिना गन्दा हुए किसी भी गन्दगी की सफाई नहीं कर सकते, हमें उस गन्दगी में उतरकर ही उस गन्दगी की सफाई करनी पड़ेगी एक दृढ़संकल्प के साथ। कभी-कभी हम अपना घर तो साफ करते हैं लेकिन अपने घर के बाहर का कूड़ा दूसरों के घरों के सामने रखने में परहेज नहीं करते क्योंकि हमने तो सिर्फ अपने घर ही सफाई का जिम्मा लिया हुआ होता है, हमें दूसरों से क्या मतलब?
नहीं! ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए, हमें अपने घर की सफाई के साथ-साथ अपने आस-पास की सफाई का भी उतना ही ख़्याल रखना चाहिए जितना हम अपने घर का रखते हैं। क्योंकि ये हमारी जिम्मेदारी ही नहीं ये हमारा कर्तव्य भी है, ये देश, ये समाज हमारा ही तो है। हमें अपने आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और सुन्दर समाज देना है जिसमें वो चैन की साँस ले पाये, सुकून से जी पाये। अगर सफाई की बात हो रही है तो यहाँ सिर्फ बाहरी सफाई की नहीं बल्कि आंतरिक सफाई की भी बात हो रही है। घर की सफाई से पहले विचारों की सफाई की अत्यंत आवश्यकता है तभी हमारा घर सुन्दर और आदर्श हो पायेगा।
आज गांधी जयंती और शास्त्री जयंती भी है उनसे सीखने को कितना कुछ है हम युवाओं के लिए। त्याग, बलिदान, और सहनशीलता इत्यादि ये सब इन महापुरुषों से सीखा जा सकता है क्योंकि इन्ही सब की वजह से वो महापुरुष हुए और बेहतर समाज बनाने में वो अपना योगदान दे पाये। और हमें इन महापुरुषों का धन्यवाद भी करना चाहिये हमें एक अच्छा समाज देने के लिये और हमें संकल्प भी लेना चाहिये कि हम इस समाज को और भी बेहतर बना कर इन महापुरुषों का स्वप्न पूरा करेंगे।