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ब्रह्मपुत्र में बांध का ऐलान, भारत-चीन में फिर होगी तनातनी?

भारत और चीन के संबंध

चीन ने गुरुवार को 14वीं पंचवर्षीय योजना को स्वीकार किया. इस योजना की वजह से भारत-चीन संबंधों में एक बार फिर से कड़वाहट आ सकती है. इस योजना के तहत करोड़ों डॉलर की कई परियोजनाओं का विकास होना है. इसी के तहत तिब्बत में अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बांध भी बनाया जाना है. यही बांध भारत और चीन के बीच एक बार फिर से कड़वाहट पैदा कर सकता है.

ब्रह्मपुत्र नदी के निचले हिस्से में आता है भारत

भारत और बांग्लादेश दोनों ही ऐसे हैं जो नदी के निचले वाले हिस्से की ओर पड़ते हैं. चीन में यारलांग जांग्पो नाम से जानी जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी में बनाए जाने वाले ऐसे किसी भी बांध से दोनों ही देश चिंतित हैं. अभी यह तय नहीं हुआ है कि क्या इस बांध की वजह से नदी के जल के बंटवारे पर भी कई असर पड़ेगा. इसी बीच भारत सरकार की ओर से कहा गया है कि 2006 के एक्सपर्ट लेवल मैकेनिज़म के आधार पर चीन से बात की जा रही है. इसके अलावा, राजदूतों के स्तर पर भी ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर चर्चा जारी है.

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चीन ने कहा- यह हमारा नैतिक अधिकार

इस प्रोजेक्ट के बारे में पिछले साल ही चीन में चर्चा शुरू हुई थी और इसका प्रस्ताव लाया गया था. चीन ने इसके बारे में कहा था कि चिंता वाली कोई बात नहीं है और निचले वाले हिस्से में आने वाले देशों से अच्छा संवाद रखा जाएगा. चीन ने यह भी कहा था कि नदी में हाइडल पावर प्रोजेक्ट बनाना उसका नैतिक अधिकार है. इसके अलावा, चीन ने यह भी कहा था कि इस तरह के सभी प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले ही विज्ञान पर आधारित योजना बनाई जाती है और निचले हिस्से में बसे इलाकों को लेकर भी पूरा आकलन किया जाता है.

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भारत ने पिछले साल दिसंबर में कहा था कि वह ब्रह्मपुत्र नदी में होने वाली हर गतिविधि पर नज़र रख रहा है और इस बारे में चीन के प्रशासन से लगातार संपर्क भी रखा जा रहा है. चीन से आई रिपोर्ट के मुताबिक, देश की नैशनल पीपल्स कांग्रेस ने दो हजार से ज़्यादा सदस्यों, राष्ट्रपति शी जिनपिंग, प्रीमियर ली केक्यिांग, और अन्य वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में यह फैसला लिया.

फिर बिगड़ेंगे भारत-चीन संबंध?

लंबे समय से लद्दाख और डोकलाम जैसे मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है. इस वजह से एक नया विवाद शुरू होने से भारत-चीन के संबंधों में मधुरता आने की उम्मीद जाती रहेगी. ऐसे में ज़रूरी है कि दोनों देश किसी भी अप्रिय स्थिति के होने से पहले ही इस मुद्दे का हल निकाल लें.