दुष्यंत चौटाला का मुख्य एजेंडा था प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण

प्राइवेट नौकरियों में राज्य के लोगों को 75% आरक्षण, चालाकी या पैर पर कुल्हाड़ी?

संविधान के अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, मूलवंश, जन्म के स्थान और लिंग के आधार पर भेदभाव न करने की बात कही गई. इसी अनुच्छेद के उपबंधों में कुछ अपवाद भी जोड़े गए. खास कर महिलाओं, बच्चों, पिछले वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान करने की शर्त रखी गई थी. हालांकि, धीरे-धीरे इसे और लचीला बनाया गया. यही नियम लोगों को फ़ायदा पहुंचाने की बजाय राजनीतिक पार्टियों को फ़ायदा पहुंचाने का जरिया बनने लगे. लोगों के आगे बढ़ने का जरिया माने जाने वाले आरक्षण का इस्तेमाल राजनीतिक ढंग से किया जाने लगा. नतीजा यह रहा कि कई वर्गों को आरक्षण का फ़ायदा मिला. जायज वजहों के अलावा नाजायज तौर पर भी इसका इस्तेमाल हुआ और अब भी जारी है.

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हरियाणा ने दिया 75 पर्सेंट आरक्षण

सरकारी नौकरियों का तो हाल वैसे ही बुरा है, तो आरक्षण पूरी तरह से कैसे लागू होगा. कई जगहों पर रोस्टर सिस्टम की वजह से आरक्षित वर्ग को ही इसका फायदा नहीं हो रहा है. अब सरकारी नौकरियों के साथ-साथ प्राइवेट क्षेत्र में आरक्षण की शुरुआत हो रही है. हालांकि, इसमें शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन को आधार नहीं माना जा रहा है. हरियाणा ने राज्य में काम करने वाली प्राइवेट कंपनियों की 75 पर्सेंट सीटें प्रदेश के लोगों के लिए आरक्षित रखने का कानून बनाया है. रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार भी इसी दिशा में कदम बढ़ा रही है.

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प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ कानूनी लड़ाई की तैयारी

इसे सीधे तौर पर सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रदेश की जनता को लुभाने का तरीका माना जाना चाहिए. हालांकि, अभी इस विषय पर बहस शुरू ही हुई है कि इसकी कानूनी वैधानिकता कितनी होगी. हरियाणा में प्राइवेट कंपनियां इस बिल के खिलाफ कोर्ट पहुंच रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानून टिकना मुश्किल है.

ज़्यादातर कम सैलरी वाली नौकरियों में है आरक्षण की तैयारी (इमेज सोर्स: Shutterstock)

आज भी देखा जाए तो समुद्र तट पर स्थित राज्यों में रोजगार के अवसर सबसे ज्यादा हैं. यूपी, बिहार, झारखंड, एमपी और राजस्थान जैसे राज्यों के करोड़ों लोग महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात और दक्षिण के कई राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं. अब अगर ऐसे राज्य भी अपने यहां आरक्षण लागू करने लगे तो वहां से लौटने वाले लोगों को उत्तर भारत के राज्य शायद ही पर्याप्त रोजगार के अवसर दे पाएं. इसकी बानगी लॉकडाउन के समय देखी भी गई. जब मुंबई और दिल्ली से लौटे लोग बिहार और यूपी में बेरोजगारी के आलम में जूझते दिखे.

सिर्फ़ आरक्षण से बनेगी बात या नौकरियों का सृजन भी ज़रूरी

आदर्श तौर पर देखें तो यह आइडिया बहुत अच्छा है कि लोगों को अपने घर के पास रोजगार मिले. लेकिन हमें समझना होगा कि क्या हम अभी इसके लिए तैयार हैं. क्या सबसे बड़ी जनसंख्या वाले यूपी और बिहार जैसे राज्य अपने लोगों को रोजगार दे सकते हैं? लॉन्ग टर्म में कुछ भी संभव है लेकिन एक कानून बनाकर सीटें आरक्षित कर देने से यह होना मुश्किल है.

लोगों को रोजगार देने के लिए पहले आधारभूत ढांचे तैयार करने और उद्योगों के लायक माहौल तैयार करना प्राथमिकता होना चाहिए. एक बार निवेश जमीन पर उतरना शुरू हो, तो रोजगार अपने आप मिलना शुरू हो जाएगा. इसका उदाहरण, नोएडा और गुड़गांव में बसी कंपनियों ने दिखाया है. कभी वीरान पड़ी इन जगहों पर आज लाखों लोग नौकरी करते हैं और अर्थव्यवस्था में एक बड़ा योगदान देते हैं.

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