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फ्रांस जैसा सत्ता विरोधी प्रदर्शन क्या भारत में हो सकता है?

भारत में शादियों का सीजन चल रहा है। हम सब अभी तक ‘पिक-नीक’ और ‘दीपवीर’ की शादियों के हैंगओवर से बाहर नहीं आ पाए हैं। उधर एक ऐसा देश भी है, जो बढ़ती बेरोजगारी, तेल के दामों में वृद्धि और कॉर्पोरेट मालिकों के खिलाफ विद्रोह की आग में जल रहा है। उस देश का अपनी राजनीतिक पार्टियों से मोहभंग हो चला है और अब वह दोहरा रहा है.. गा रहा है… बस एक नारा – हमें जीने दो, हमें जीने दो……..

आप सभी को 1789 में हुई फ्रांस की क्रांति तो याद होगी न। तो एक बार फिर हमें उसी क्रांति को याद करते हुए फ्रांस को देखना चाहिए।

इन दिनों फ्रांस में व्यापक जन-विद्रोह चल रहा है। 17 नवंबर को तीन लाख लोग सड़क पर उतर आए थे, वहीं 1 दिसंबर को एक लाख 60 हजार लोगों ने मिलकर आगजनी, तोड़-फोड़ और लूटपाट की घटनाओं को अंजाम दिया। इतना ही नहीं फ्रांस की राजधानी पेरिस में 412 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन देश में आपातकाल लगाने की तैयारी कर रहे हैं। सरकार इस विद्रोह को रोकने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रही है और धीरे-धीरे फ्रांस का एक-एक वर्ग-विशेष इस आंदोलन में शामिल हो रहा है।

बात अगर क्रांति की शरुआत करें तो इसके अगुआ सिर्फ ‘येलो वेस्ट’ लोगों को माना जा रहा था, जो ईंधन के दामों में बेतहाशा वृद्धि के कारण सड़कों पर उतरे थे। पर अब इस विद्रोह को छात्रों, फ्रांस के मध्यवर्गी लोगों और ट्रेड यूनियनों का भी साथ मिल गया है। एक सर्वे के अनुसार इस विद्रोह को फ्रांस के 70 प्रतिशत लोगों का समर्थन प्राप्त है और हर तरफ ‘नव उदारवादी पूंजीवाद मुर्दाबाद’ और ‘मैक्रान इस्तीफा दो’ का नारा गूंज रहा है।

बड़े कारण

ईंधन के दामों में वृद्धि – फ्रांस में इस समय डीज़ल 121 रू प्रति लीटर के दाम पर मिल रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि  मैक्रॉन सरकार ने ईंधन कर में  भारी वृद्धि की है। इस कर में वृद्धि के कारण मज़दूर और मध्यवर्गीय लोगों का जीना मुश्किल हो रहा है।

दूसरा बड़ा कारण है बेरोज़गारी जो  9.5 प्रतिशत के करीब है। राष्ट्रपति मैक्रॉन जब चुनाव लड़ रहे थे तो उन्होंने रोज़गार सृजन का वादा किया था पर बीते 18 महीनों में कुछ नहीं हुआ।

तीसरा कारण हैश्रम कानून फ्रांस के श्रम कानून की खास बात यह है कि दुनिया के अधिकांश देशों की तुलना यह ज्यादा श्रमिकों के पक्ष में रहा है और अब राष्ट्रपति मैक्रॉन इसमें बदलाव कर रहे हैं।

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छात्रों की फीस में वृद्धि, पेंशन में कमी और लगातार आम लोगों के लिए तमाम करों में बढ़ोतरी वहीं धन्ना सेठों के लिए संपत्ति कर में कटौती

ये वे तमाम कारण हैं, जिसके लिए फ्रांस के लोगों ने अरबपतियों के घरों में लूटपाट कर उसे आग के हवाले कर दिया। इतना ही नहीं सरकारी प्रतिष्ठानों और बड़े शॉपिमग मॉलों में भी काफी तोड़-फोड़ की है।

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विश्व के बड़े पॉलिटिकल विश्लेषकों की माने तो जिस तरह 1789 की क्रांति ने फ्रांस में सामंतवाद का खात्मा कर दिया था और 1871 की सर्वहारा क्रांति ने पूंजीवाद-सामंतवाद को खत्म करके पेरिस कम्यून की स्थापना की और मजदूरों और किसानों का राज स्थापित किया, ठीक उसी तरह यह क्रांति भी फ्रांस को कुछ बड़ा देकर जा सकती है।

अब बात भारत की करते हैं राष्ट्रपति मैक्रॉन की सरकार के आए 18 महीने हुए होंगे और उनके वादे पूरे नहीं हुए तो लोग सड़क पर हैं। वहीं भारत में सरकार आती है, चली जाती है, वादे-वादे रह जाते हैं और भारतीय जनमानस मंदिर–मस्जिदों के लिए सड़क पर उतर आता है।

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आज भारत में किसान मर रहे हैं। लोग पेंशन के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। साल दर साल पढ़े-लिखे बेरोज़गारों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारे धन्ना सेठ धन लूटकर भाग गए और हमारे नेता किसने कितनी गालियां दीं और कौन कितना भ्रष्ट्र है इसके हिसाब-किताब में लगे हुए हैं।

हम ‘राम-राम’ चिल्ला रहे हैं तो फ्रांस के नौजवान ‘काम–काम’।  फ्रांस में लोगों ने अपने हक के लिए अरबपतियों के घरों को लूट लिया है जबकि हमारे अंबानी साहब बिटिया की शादी में 3 लाख तो एक न्यौते के कार्ड पर फूंक देते हैं और हम इसे देख देखकर इंस्टा और फेसबुक के लाइक्स बढ़ाते हैं।

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