फ़लक से तोड़कर क़िस्सा ज़मीनी तौर पर कहना
बहुत मुश्किल है अब कुछ भी यक़ीनी तौर पर कहना.
किसे चाहें किसे मानें किसे छू लें किसे जानें
ये बातें दिल की बातें हैं न दीनी तौर पर कहना.
उसे फाज़िल कहो ऐसे हमें जाहिल सुनाई दे
क़सीदे में ये फ़न है नुक़्ताचीनी तौर पर कहना.
मुहब्बत की सलाहीयत भी सीखोगे मदरसों में?
ग़ज़ल कहना ही क्यूं है जब मशीनी तौर पर कहना.
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कोई माज़ी या मुस्तक़बिल, हो कुछ तो बात का हासिल
ग़ज़ल कहना तो कुछ तो दूरबीनी तौर पर कहना.
❤️शाद (भवेश दिलशाद)
(ग़ज़ल के समृद्ध हस्ताक्षर भवेश दिलशाद, पेशे से पत्रकार हैं. देश में अदब की दुनिया के बेहद चर्चित शायरों में से एक.)