वीर्य से भरा गुब्बारा फोड़कर कहना कि बुरा न मानो होली है, कहाँ तक सही है? सुनने में बेहद सा अजीब है कि वीर्य से भरा गुब्बारा? हां, दिल्ली जैसे महानगर में होली के बहाने दिल्ली विश्वविध्यालय में पढ़ने वाली छात्रा पर सरेराह एक गुब्बारा फेंककर मारा गया जिसमें वीर्य भरा हुआ था, मौका था होली का. होली हो दिवाली या कोई और त्यौहार सबके मनाने का अपना ढंग होता है लेकिन होली में थोड़ी बदमाशियां थोड़ी सी शरारतें बढ़ जाती हैं. यहां कोई छोटा-बड़ा, स्त्री-पुरुष हिन्दू-मुसलमान नहीं होता, यहां होता है तो बस रंग हर रंग का रंग और होते हैं रंग से सने लाल, पीले, नीले रंगों में छिपे चेहरे जिन्हें पहचान पाना तक मुश्किल होता है.
हर शहर हर गाँव के अपने तौर-तरीके और अपने-अपने रिवाज होते हैं इस त्यौहार को मनाने के. कहीं केवल अबीर-गुलाल लगाकर होली खेली जाती है तो कहीं किसी को पकड़कर नाले में डुबा दिया जाता है. इलाहाबाद में रहते हुए पहली बार कपड़ा फाड़ होली देखी, विश्विद्यालय के हॉस्टल से लेकर शहर की गलियों तक में अगर कुछ दिखता है तो वह है रंगों से रंगी सड़कें और बिजली के तारों पर झूलते रंग-बिरंगे कपड़े, जो कि होली के बाद 15 दिनों तक टंगे रहते हैं और तेज हवा चलने पर कभी कभार किसी के ऊपर गिरकर एक बार होली की यादें ताजा कर जाते हैं.
पूरा शहर जब होली खेल रहा होता है, ठीक उसी समय शहर के हर कोने में कोई ऐसा होता है, जो सोचता है कि काश हम भी होली खेल पाते? हम भी अपने दोस्तों या जानने वालों को उसी शिद्दत के साथ रंग पाते जिस तरह कुछ लोग रंग रहे हैं.
इलाहाबाद में 4 साल रहकर पढ़ाई की, इसे दुर्भाग्य कहूं या सौभाग्य कि जिसने मुझे इन चार सालों में वहां की होली, होली को मनाने का तरीका, बनने वाले पकवान सबके बारे में जानने का मौका दिया. इस सब को जानकर मन खुश हो जाता था/है। वहीं इस शहर की एक बात जो आधी या,पूरी खुशियाँ छीन लेती थीं. होली के त्यौहार में ये शहर लड़कियों और महिलाओं के लिए बिलकुल सुरक्षित नहीं रह जाता. होली के चार दिन पहले से हॉस्टलों में होली खेली जाने लगती है. लड़कों के इस उत्साह में एक भाग बिल्कुल नदारद हो जाता है. लड़कियां अपने घरों से बाहर नहीं निकल सकतीं क्योंकि किसी अनहोनी की आशंका हमेशा बनी रहती है। कोचिंग सेंटर लड़कियों की सुरक्षा के नाम पर हफ्ते भर पहले छुट्टी कर देते हैं और सभी पढ़ने वाली महिलाओं को सलाह दी जाने लगती है कि वे घर चली जाएं कहीं ऐसा न हो कि उनके साथ दुर्घटना हो जाए.
इलाहाबाद में रहने के दौरान का वह मंजर कभी नहीं भूल सकता कि कैसे एक बार होली खेलते और हुड़दंग देखते हुए जब हम प्रयाग स्टेशन के पास बने महिला छात्रावास के पास पहुंचे तो देखा कि सन्नाटा पसरा हुआ है, छात्रावास में रहने वाली लड़कियों की सुरक्षा के नाम पर गेट पर बड़े बड़े ताले लटके हुए हैं और उन तालों की सुरक्षा के लिए दो पुरुष सिपाही सुरक्षा में तैनात हैं और सामने हुड़दंग मचाते लड़के पुलिस वालों से महिला छात्रावास में जाने की गुजारिश कर रहे हैं.
दिल्ली हो या इलाहाबाद या फिर कोई और जगह होली महिलाओं के लिए हमेशा परेशान करने वाला त्यौहार बनकर आता है. जब सुना कि दिल्ली में एक महिला के ऊपर वीर्य से भरा गुब्बारा फेंक दिया गया वह भी होली के बहाने तो अपने पर शर्म आने लगी और सोचने लगा कि अगर महिलाएं साथ में होली खेलें तो कितना खूबसूरत लगता होगा हर एक चेहरे पर रंग गुलाल लेकिन हम लड़कों ने उन्हें सम्मान के साथ बाहर निकालने देने के बजाय वीर्य भरे गुब्बारे फेंककर उन्हें घर के भीतर चहारदीवारी में बंद रहने पर मजबूर कर दिया.