त्रिपुरा में ढहा लाल दुर्ग, चुनावी रिंगमास्टर बने अमित शाह

भाजपा ने त्रिपुरा में वाम की ढाई दशक साल पुरानी सरकार से सत्ता छीन ली है। कई अन्य राज्यों की तरह यहां पर भी कांग्रेस का सफाया हो गया है। बीजेपी दो तिहाई सीट लेकर सरकार बनाने की ओर अग्रसर है।

पांच वर्ष पूर्व महज डेढ़ फीसदी वोट पाने वाली पार्टी के बारे में शायद ही कोई सोच सकता था कि यहां भाजपा इतने कम समय में सरकार बना पाएगी। भाजपा ने महज पांच सालों में शून्य से दो-तिहाई बहुमत तक का सफर तय किया है। एन्टी इनकंबेंसी का डर भले ही त्रिपुरा में दिख रहा था मगर माणिक सरकार की जो छवि थी उससे स्पष्ट लग रहा था कि त्रिपुरा में वामदल अपना गढ़ बचाने में कामयाब हो जाएगी।

कई बार सुनने को ऐसी खबरें भी मिल रही थी कि भाजपा वहां नम्बर दो की हैसियत पाने को लड़ रही थी। परंतु अब त्रिपुरा में जनादेश का निर्णय आ चुका है। भाजपा अन्य राज्यों में भी अपनी सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाने में जुट गई है। इधर सोशल मीडिया में तो लतीफ़े भी चल रहे हैं कि जहां भाजपा स्पष्ट बहुमत नहीं लाती है वहां शाह की सरकार बनती है।

अगर जीत के कुछ पहलुओं पर गौर किया जाए तो इस चुनाव में एंटी इनकंबेंसी जैसे मुद्दे के साथ-साथ योगी और आरक्षण का इफ़ेक्ट भी कारगर रहा। त्रिपुरा की आबादी की एक तिहाई जनसंख्या नाथ संप्रदाय को मानने वाली है। योगी यूपी के सीएम के अलावा इस सम्प्रदाय के भी मुखिया हैं। भाजपा ने इस बार इसे खूब भुनाया भी है। इस छोटे से राज्य में मुख्यमंत्री योगी ने सात रैलियां भी की थीं जिसमें उन्होंने नाथ सम्प्रदाय के लोगों को आरक्षण दिलाने का वायदा भी किया।

नाथ संप्रदाय केंद्र में ओबीसी वर्ग में आती है जबकि राज्य में इस समुदाय के लोगों को सामान्य वर्ग का दर्जा मिला हुआ है। भाजपा के लाल किले में सेंध लगाने के पीछे योगी और आरक्षण फैक्ट भी रहा है। भाजपा की जीत के किसी भी वजह में सबसे बड़ी वजह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। भाजपा के चुनावी रण में मोदी की कितनी अहम भूमिका है इसपर पहले ही काफी लिखा जा चुका है।

इसके अलावा कांग्रेस की अकर्मण्यता भी भाजपा के जीत की एक बड़ी वजह रही है। कांग्रेस पहले भी आक्रमकता के साथ चुनाव नहीं लड़ने के लिए बदनाम रही है और त्रिपुरा में इस बार भी कांग्रेस की मजबूती दिखाई नहीं दी। बीजेपी ने कांग्रेस की इसी कमजोरी का भरपूर फायदा उठाया। जब भाजपा उपचुनाव तक में अपने मंत्रियों को चुनाव प्रचार में उतार देती है फिर तो यह त्रिपुरा जैसा महत्वपूर्ण राज्य था। बीजेपी ने हर चुनाव की तरह इस चुनाव को भी गंभीरता से लिया और लाल दुर्ग को ढ़ाहने में कामयाब रही।

वैसे तो हार और जीत के कई अलग-अलग कारण होते हैं जिसमें जीतने के बाद कई कमजोरियां भी परिणाम के साथ ढक दी जाती हैं। यदि भाजपा को अगले कुछ विधानसभा सभा में विजय होना है तो उन्हें किसी भी गफलत से दूर रहना होगा।

इससे पूर्व भाजपा 2016 में भी केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल में बुरी तरह पराजित हुई थी। विरोधियों का उत्साह चरम पर था उन्होंने मोदी को चुका हुआ साबित कर ही डाला था। अगले विधानसभा चुनाव के लिए मसाला लगभग तैयार ही था पर बीजेपी ने नोटबंदी कार्ड खेल दिया और फिर से फ्रंटसीट पर आ गयी। परिणामस्वरूप अगले छह महीने बाद ही बीजेपी तीन राज्यों में सरकार बना चुकी थी।

उसी तरह स्पष्ट है कि भाजपा भी इस परिणाम को अगले विधानसभा चुनावों में खूब भुनायेगी। पर सत्य यही है कि नॉर्थईस्ट समूचा भारत नहीं हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा बैकफुट पर है और अगले कुछ महीनों में अगर कुछ चमत्कारिक नहीं घटा तो बीजेपी वहाँ मुश्किलों में घिर सकती है। फिलहाल भाजपा को शुभकामनाएँ समर्थकों को इस जीत ने कल होली मनाने के बाद आज दीवाली का भी मौका दे दिया है।