“महारानी राज तुंदु जाना ओरो अबुआ राज एते जाना” यानी कि ‘(ब्रिटिश)महारानी का राज खत्म हो और हमारा राज स्थापित हो’। ये बोल यूं तो बिरसा मुंडा के हैं लेकिन उस वक्त इसे लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना ‘अहल-ए–तदबीर’ का नारा बनाया था। यदि एक कोई नाम, जिसे भारत के सभी आदिवासी समुदायों ने आदर्श और प्रेरणा के रूप में स्वीकारा है, तो वह हैं बिरसा मुंडा’। “धरती आबा” उर्फ बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि 9 जून को आदिवासी लोग अपने ‘भगवान’ बिरसा के शहीदी दिवस के रूप में भी मनाते हैं।
संघर्ष के बाद बना सीएनटी ऐक्ट
उन दिनों आदिवासी समाज भूमिहीन होता जा रहा था और मजदूरी करने पर विवश हो चुका था। हर तरफ आक्रोश और असंतोष का माहौल था। उस वक्त बिरसा मुंडा ही थे, जिनके संघर्ष के फलस्वरूप ही छोटा नागपुर टेनेंसी ऐक्ट, 1908 (CNT) इस क्षेत्र में लागू हुआ, जो आज तक कायम है।
धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने फिर हुई ‘घर-वापसी’
बात अगर बिरसा के बचपन की करें तो बिरसा का जन्म 1875 में रांची जिले के उलीहातु नामक स्थान में 15 नवम्बर 1875 को हुआ। बिरसा ‘मुंडा’ समाज से थे, जोकि भारत की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है। बिरसा के पिता सुगना मुंडा किसान थे और उनका बचपन गरीबी, अभाव में बीता। इस कारण वह अपने चाचा के साथ अयूभाटू गाँव में पले बढ़े। बिरसा ने प्रारंभिक शिक्षा सलगा में स्थित जयपाल नाग द्वारा चलाए जा रहे स्कूल से की। पढ़ाई में तेज होने के कारण जयपाल नाग ने उन्हें जर्मन लुथेरन मिशन स्कूल, चाईबासा में डालने की सिफारिश की। इसी समय उनका ईसाई धर्म में परिवर्तन हुआ और उन्हें ‘बिरसा डेविड’ नाम मिला जो बाद में ‘बिरसा दौद पूर्ती’ के नाम से जाने जाने लगे। कुछ वर्ष पढ़ाई करने के बाद, उन्होंने जर्मन मिशन स्कूल छोड़ दिया। ईसाई धर्म त्यागने के बाद बिरसा ने सांस्कृतिक लोकाचार बनाए रखने और बोंगा (पुरखा देवताओं) को पूजने पर जोर दिया।
आदिवासियों का शोषण चरम पर था
मुंडा जनजाति के लोग छोटा नागपुर क्षेत्र में आदिकाल से रह रहे थे और वहां के मूल निवासी थे। उन दिनों अंग्रेजी सरकार के आने पर आदिवासियों पर अनेक प्रकार के टैक्स लागू किए गए। इसी दौरान जमींदार आदिवासियों और ब्रिटिश सरकार के बीच मध्यस्त का काम करने लगे और आदिवासिओं का शोषण बढ़ने लगा। जैसे ही ब्रिटिश सरकार आदिवासी इलाकों में अपनी पकड़ बनाने लगी, हिन्दू धर्म के लोगों का प्रभाव इन क्षेत्रों में बढ़ने लगा।
सोते वक्त हुए गिरफ्तार और जेल में हुई मौत
न्याय नहीं मिल पाने के कारण आदिवासियों के पास केवल खुद से संघर्ष करने का रास्ता मिला। बिरसा ने नारा दिया “महारानी राज तुंदु जाना ओरो अबुआ राज एते जाना” अर्थात ‘(ब्रिटिश) महारानी का राज खत्म हो और हमारा राज स्थापित हो’। बिरसा के विद्रोह को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ़्तारी के लिए 500 रुपये का इनाम भी घोषित किया। 1900 में ब्रिटिश सेना और मुंडा सैनिकों के बीच ‘दुम्बरी पहाड़ियों’ में संघर्ष हुआ, जिसमें अनेक आदिवासी सैनिक शहीद हुए। हालांकि बिरसा वहां से बच निकलने में सफल हुए और सिंघभूम की पहाड़ियों की ओर चले गए। मार्च 3, 1900 को बिरसा जम्कोपाई जंगल, चक्रधरपुर में ठहरे हुए थे, जहां सोते वक्त उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना में 460 अन्य आदिवासियों को भी गिरफ्तार किया गया, जिसमें एक को मौत की सजा सुनाई गई और 39 लोगों को आजीवन कारावास मिला। उसके बाद 9 जून 1900 को रांची जेल में बिरसा मुंडा का निधन हो गया।
अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा का यह संघर्ष 6 वर्षों से अधिक चला। उनकी मृत्यु के बाद सरकार ने लोगों को आश्रय दिया और छोटा नागपुर टेनेंसी ऐक्ट पारित हुआ। यह ऐक्ट आदिवासी जमीन को गैर आदिवासियों को बेचने से रोकता है और आदिवासियों के मूल अधिकारों की रक्षा करता है।
सीएनटी ऐक्ट में हुआ बदलाव
पिछले वर्ष झारखंड की बीजेपी सरकार ने सीएनटी ऐक्ट में थोड़ा बदलाव किया। इनके नए नियमों के मुताबिक, जनजातीय लोग सरकार या प्राइवेट कंपनियों के साथ गैर कृषि जमीन उपयोग के लिए व्यापारिक समझौते कर सके हैं। हालांकि, जमीन के असली मालिक जनजातीय लोग ही रहेंगे। इस तरह के संशोधनों के माध्यम से सरकार का प्रयास है कि राज्य में निवेश लाया जाए और लोगों को रोजगार मिल सके। हालांकि, सरकार के इन दावों पर आदिवासियों ने कई बार शिकायतें भी की हैं कि उनकी कुछ सुनी नहीं जाती है और जमीन छीन ली जाती है।
आदिवासियों की हालत खराब देखकर कवि भुजंग मेश्राम की कविता याद आती है:
‘बिरसा तुम्हें कहीं से भी आना होगा
घास काटती दराती हो या लकड़ी काटती कुल्हाड़ी
यहां-वहां से, पूरब-पश्चिम, उत्तर दक्षिण से
कहीं से भी आ मेरे बिरसा
खेतों की बयार बनकर
लोग तेरी बाट जोहते।’
याद रहेंगे ‘धरती-आबा’
अपने कार्यों और आंदोलन की वजह से बिहार और झारखंड में लोग बिरसा मुंडा को आज भी भगवान की तरह पूजते हैं। आज के समय में बिरसा मुंडा आदिवासी आन्दोलनों के लिए एक प्रेरणा हैं, तो “धरती आबा” यानी ‘पृथ्वी के पिता’ कहे जाने वाले बिरसा मुंडा को उनकी बहादुरी और शहादत के लिए हमेशा याद किया जाएगा।