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सुशांत केस में अतिवादी रिपोर्टिंग लोगों को बेवकूफ बना रही है?

sushant case

मीडिया के विद्यार्थियों को बुलेट थियरी पढ़ाई जाती है। इसमें होता कुछ यूं है कि एक ही चीज आपको इतनी बार दिखा दी जाए कि आप इसे सच मानने लगें और उससे प्रभावित हों। अच्छी पहल या नेक कामों को इस तरह दिखाया जाए तो बड़ा बदलाव भी आ सकता है। दुर्भाग्य है कि हमारे देश में टीवी मीडिया कुछ ऐसी चीजों को बार-बार दिखाता है, जिससे बदलाव तो नहीं आता, हां, आम जनता अनजाने में बेवकूफ जरूर बनती रहती है। वह समझ नहीं पाती कि उसे टीवी न्यूज के नाम पर अलग दिशा में हांका जा रहा है, जहां से वह खुद को एक अंधेरे घेरे में घिरा हुआ पाती है।

आम जनता की पढ़ाई-लिखाई एक खांचे में बंधी होती है इसलिए वह समझ नहीं पाती है कि उसे दिखाई जा रही खबर के पीछे कौन सी खबर दबाई जा रही है। ताजा मामला सुशांत सिंह राजपूत की मौत का है। सुशांत ने आत्महत्या की या उनकी हत्या कर दी गई, यह बड़ा और वाजिब प्रश्न है। कई बड़े फिल्म कलाकारों और राजनेताओं की भी इसमें भूमिका होने की आशंका जताई जा रही है लेकिन जिस तरह से इस मामले की रिपोर्टिंग की जा रही है, वह घृणित है।

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आंदोलन के मूड में क्यों है टीवी चैनल?

तथाकथिक न्याय दिलाने की लड़ाई के नाम पर दिनरात मीडिया ट्रायल के बीच जनता मूर्ख बन रही है। कई चैनल तो एकदम आंदोलन मूड में हैं कि हम दिलाएंगे न्याय। आखिरकार सीबीआई के हाथ में केस आ गया लेकिन अभी भी मीडिया झंडा उठाए दौड़ रहा है। ठीक लद्दाख विवाद, तबलीगी जमात और अन्य ऐसे मामलों की तरह। इन मामलों में भी एक समय तक मीडिया ने खूब टीआरपी बटोरी लेकिन साजिशन चुप्पी की तरह शांत हो गए। बारीकी से देखें तो समझ आता है कि यह चुप्पी सिर्फ टीआरपी की नहीं बल्कि कुछ छिपाने की भी होती है।

बहुत क्रूर और भयावह होता जा रहा है मीडिया का चरित्र

‘जनता बेवकूफ बनती है’ ऐसा इसलिए लिखना पड़ रहा है कि इस अतिवादी रिपोर्टिंग के पीछे बड़े मुद्दे दब गए हैं। बिहार में चुनाव हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि बिहार की जनता बाढ़ से कम सुशांत केस से ज्यादा परेशान है। असम के लोग पहले एनआरसी, अब बाढ़ से परेशान हैं। कोरोना से पूरा देश जूझ रहा है लेकिन स्वास्थ्य महकमे की नाकामियों पर सुशांत रूपी पर्दा डाल दिया गया है। बेशक सुशांत केस की जांच जरूरी है और हो भी रही है लेकिन मीडिया का उस केस की हर दिन कवरेज करना तो सिर्फ जनता को बेवकूफ बनाने का तरीका भर ही है।

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