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पोस्टल बैलट क्या होता है? बिना बूथ पर गए कैसे डाला जाता है वोट?

चुनाव के समय पोस्टल बैलट नाम का शब्द खूब सुनाई देता है. जिस दिन वोटों की गिनती होती है उस दिन टीवी पर सुबह सबसे पहले इसी का नाम आता है. आम लोग तो बूथ पर जाकर ईवीएम मशीन से वोट डालते हैं, फिर ये पोस्टल बैलट आखिर क्या है. आइए हम आपको समझाते हैं कि ये है क्या और ये किस तरह से काम करता है. 

जैसा कि नाम से पता चलता है कि ये पोस्ट से भेजा जाता है. इसीलिए इसका नाम है पोस्टल बैलट. इसमें कुछ खास लोगों को सुविधा दी जाती है कि वे बिना बूथ पर गए ही अपना वोट डाल सकें. ऐसा इसलिए क्योंकि लोकतंत्र है और लोकतंत्र में एक-एक वोट की कीमत समझी जाती है. 

इसकी शुरुआत ऑस्ट्रेलिया में हुई थी और 1877 में ही वहां इसका इस्तेमाल शुरू हो गया था. भारत में भी शुरुआती चुनावों से ही इसका इस्तेमाल हो रहा है. धीरे-धीरे इसके नियमों में बदलाव होता रहा है. अब बैलट पेपर की बजाय ईवीएम मशीनों से वोट डाले जाने लगे हैं, लेकिन पोस्टल बैलट आज भी जारी है.

क्यों इस्तेमाल होता है पोस्टल बैलट?

भारत में नौकरी के चक्कर में ही सब होता है. करोड़ों लोग अपने घरों से बाहर रहते हैं. चुनाव आयोग अपेक्षा करता है कि ये लोग भी चुनाव के समय अपना वोट डालें. लेकिन नौकरी करने वाला आदमी मुंबई या दिल्ली से अपने गांव जाकर वोट डालना पसंद नहीं करता. पसंद कर भी ले तो कई बार परिस्थितियां उसे जाने नहीं देतीं.

इंटरव्यू: खुद के बारे में क्या सोचते हैं चुनावी वादे?

हालांकि, सरकारी कर्मचारियों का वोट डालना आसान हो इसीलिए इसका इस्तेमाल होता है. भारत की सेना, अर्धसैनिक बलों जैसे कि सीआरपीएफ और सीआईएसएफ आदि. इसके अलावा, चुनाव ड्यूटी में लगे लोग, विदेश में भारत सरकार की नौकरी कर रहे लोग और इस तरह के अन्य लोग जो सरकारी जिम्मेदारियों की वजह से अपने घर नहीं जा सकते, उन्हें पोस्टल बैलट की सुविधा दी जाती है कि वे अपना वोट डाल सकें. प्रिवेंटिव डिटेंशन में रखे गए लोगों को भी बिना बाहर गए वोट डालने की सुविधा मिलती है. हालांकि, कैदियों को वोट डालने का अधिकार नहीं होता है.

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कैसे काम करता है पोस्टल बैलट

सरकारी कर्मचारियों को उनकी संस्था की ओर से पोस्टल बैलट उपलब्ध कराया जाता है. यह तब होता है, जब उनकी विधानसभा/लोकसभा में उम्मीदवार अपना पर्चा भर लेते हैं. उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट तैयार होते ही मतदाताओं को पोस्टल बैलट भेज दिए जाते हैं. ये खास मतदाता अपना वोट डालकर भेज देते हैं. पोस्टल बैलट वाले वोट, असली वोटिंग से एक दिन पहले तक जमा कर दिए जाते हैं. 

अब डिजिटल पोस्टल बैलेट भी आ गया

पहले ये सब सिर्फ़ डाक के ज़रिए ये काम होता था, लेकिन ये काफी धीमा था. तो डिजिटिल दुनिया में अब ये काम भी डिजिटल हो गया है. इसका नाम है इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट सिस्टम (ईटीपीबीएस). यानी अब पोस्टल बैलट को डिजिटल तरीके से मतदाताओं को भेजा जाता है. और इसका एक कोड होता है, ओटीपी जैसा. इस कोड का इस्तेमाल करके ही वोट डाला जा सकता है. वोट डालने के बाद इस बैलट के प्रिंटआउट को पोस्ट के माध्यम से भेज दिया जाता है.

कोविड ने बदले कुछ नियम

कोरोना आने की वजह से चुनावी प्रक्रिया में भी थोड़ा बदलाव किया गया है. अब चुनाव आयोग ने 80 साल की उम्र से ज़्यादा के लोगों, कोविड से संक्रमित लोगों और दिव्यांगों को भी पोस्टल बैलट से वोट डालने की अनुमति दी है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसके लिए लोगों के घर-घर टीम भेजी जा रही है, ताकि उनका वोट इकट्ठा किया जा सके.

फ़ॉर्म 12 D भरने का प्रोसेस

दिव्यांगों और 80 साल के उम्र के लोगों को पोस्टल बैलट का इस्तेमाल करने के लिए फॉर्म 12डी भरना होता है. इसके लिए आप बीएलओ से फ़ॉर्म लीजिए. और फॉर्म भरकर उन्हें ही दे दीजिए. ये फॉर्म अधिसूचना जारी होने के बाद पांच दिन के लिए उपलब्ध होता है. फॉर्म सही पाए जाने के बाद पार्टियों को भी इसके बारे में जानकारी दी जाती है कि इतने लोग पोस्टल बैलट से वोट डालने वाले हैं. घर से वोट डालने पर बीएलओ के साथ वीडियोग्राफी टीम भी भेजी जाती है.

काउंटिंग

काउंटिंग के समय इनकी संख्या सबसे कम होती है, इसीलिए सबसे पहले वही गिने जाते हैं.

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