आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को शुक्रवार को आफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले चुनाव आयोग ने अयोग्य घोषित कर दिया है। ऐसे में उन्ही के पार्टी के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली। उन्होंने वही काम किया जिसके लिए उनकी पार्टी प्रसिद्ध है। ‘आप’ ने एक और आरोप जड़ दिया।
सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया कि ’23 जनवरी को रिटायर हो रहे मुख्य चुनाव आयुक्त अचल कुमार जोति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कर्ज़ चुकाना चाहते हैं। हम हाइकोर्ट में अपील करेंगे।” फिलहाल हाईकोर्ट ने किसी भी तरीके की रियायत देने साफ इनकार कर दिया। हाइकोर्ट ने ‘आप’ को फटकार लगाई कि इस मामले में विधायकों को चुनाव आयोग के बुलाने पर जाना चाहिए था। ऐसे में मसले पर फौरी राहत नहीं दी जा सकती।
केजरीवाल जी थोड़ा पीछे जाइये और देखिए कि 2006 में किस तरह से कांग्रेस पार्टी की तत्कालीन अध्यक्ष और सांसद सोनिया गांधी को इस्तीफा देना पड़ा। तब वह शक्तिशाली महिलाओं में से एक थीं। केंद्र में उनकी सरकार थी फिर भी चुनाव आयोग ने उनकी सस्यता रद्द कर दी थी। उनके ऊपर भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस बना था। सांसद रहते हुए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का अध्यक्ष बनाये जाने से उनकी सस्यता रद्द की गई थी। इसी तरह जया बच्चन की भी राज्यसभा सदस्यता रद्द हुई जब वह राज्यसभा सांसद होते हुए उत्तर प्रदेश फ़िल्म विकास निगम की चेयरमैन बनी थीं। तब जया बच्चन सुप्रीम कोर्ट भी गयी थीं और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कड़ी लताड़ लगाई थी और किसी भी प्रकार की रियायत देने से साफ इंकार कर दिया था। केजरीवाल और उनकी पार्टी को सिर्फ आरोप लगाना आता है लेकिन पिछला रिकॉर्ड चेक नही करना आता।
केजरीवाल सत्ता के नशे में चूर जो मन आये वही कर रहे हैं। इसे यूं कहा जाए ‘न खाता न बही जो केजरीवाल कहें वही सही’ तो ज्यादती नहीं होगी। आखिर कैसे विधायक मंत्री रहते हुए आप दो जगह से वेतन भत्ते का लाभ ले सकते हैं। इसके लिए संविधान में बाकायदा कानून बना हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 191 और जीएनसीटीडी एक्ट, 1991 की धारा 15 के मुताबिक अगर कोई विधायक लाभ का पद धारण करता है तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
13 मार्च 2015 को आप की सरकार ने एक आदेश पारित कर आपने 21 विधायकों को सचिव बनाया। वकील प्रशांत पटेल ने इनकी अयोग्यता को लेकर राष्ट्रपति के पास चुनौती दी। दिल्ली सरकार ने इसे रोकने के लिए 2015 में असेंबली में एक विधेयक पारित किया। मेंबर ऑफ लेजिसलेटिव असेंबली (रिमूवल ऑफ डिसक्वालिफिकेशन, अमेंडमेंट बिल) के नाम से इस बिल में तत्काल प्रभाव से लाभ के पद से संसदीय सचिवों को बाहर कर दिया गया।हालांकि राष्ट्रपति ने इस अमेंडमेंट बिल को रोक लिया और आगे की कार्रवाई के लिए मामले को चुनाव आयोग को सौंप दिया।
डॉ. देवराव लक्ष्मण बनाम केशव लक्ष्मण बोरकर एआईआर 1958 की धारा 1919(ए) के तहत निम्नलिखित पद लाभ के पद के दायरे में नहीं आते हैं-
(1) मंत्री पदों के विपरीत गैर-लाभकारी और बिना किसी तय वेतन के पद
(2) पद/नियुक्ति के साथ कोई सुविधा न जुड़ी हो
(3) कोई निश्चित दफ्तर या ऑफिस सपोर्ट सिस्टम नहीं
(4) जिनके पास कोई खास काम या उत्तरदायित्व न हो, जो प्रभारी मंत्री को सरकारी कामकाज में सिर्फ मदद करते हों
(5) सरकार के किसी मामले या मंत्री के काम से जुड़े प्राधिकार पर कोई ओपिनियन देने का काम नहीं होगा
(6) सरकारी सूचना या कागजात तक इनकी कोई पहुंच नहीं होनी चाहिए
तो कुल मिला कर लाभ के पद पर आप को हानि हो चुकी है। 20 AAP विधायकों की सदस्यता रद करने पर राष्ट्रपति भी मुहर लगा देते हैं तो 70 में से आम आदमी पार्टी के विधायकों की संख्या 46 रह जाएगी।
एक समय मे केजरीवाल ‘अन्ना के अर्जुन’ हुआ करते थे, ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ के समर्थन में लाखों लोग सड़कों पर अपनी मौजूदगी सिर्फ अन्ना के चेहरे पर दी थी और केजरीवाल भी उस प्रोटेस्ट में अन्ना टीम के हिस्सा थे, लेकिन जब इस प्रदर्शन से इन्हें ज्यादा फ़ायदा नही दिखा तो केजरीवाल ने अपनी पार्टी बनायी जिसका नाम रखा ‘आम आदमी पार्टी’।
दिल्ली के लोगों ने केजरीवाल पर भरोसा जताया और केजरीवाल की पार्टी ने बड़े अंतर से चुनाव भी जीता।भले ही बाद में चुनाव के पहले किये वादों को पूरी तरह से नकारा गया।आम आदमी पार्टी अब स्पेशल आदमी पार्टी बन गई और आम आदमी पार्टी ने अपने विधायको की सैलरी में 4 गुना का इजाफ़ा कर दिया।
मतलब 2 लाख 35 हजार रुपये, प्रधानमंत्री से भी ज़्यादा वेतन दिल्ली के विधायकों की वाह केजरीवाल जी क्या आम आदमी खाली ढोंग था? केजरीवाल ने अपने मुख्य सहयोगियों के साथ बड़ा धोखा किया चाहे वो प्रशांत भूषण हों चाहे योगेंद्र यादव या कुमार विश्वास।
केजरीवाल अहमी हो गए थे क्योंकि उनकी पारी ने दिल्ली चुनावों में 67 सीट जीती थी। केजरीवाल ने लोकसभा चुनावों में अन्य जगह जाकर प्रचार प्रसार तो किया लेकिन अमेठी सीट पर नहीं, आख़िर क्यों?
क्या केजरीवाल को कुमार की बढ़ती लोकप्रियता से डर लग रहा था? आम आदमी पार्टी हमेशा आरोपों से बचने के लिए किसी पत्रकार पर आरोप लगा देती है तो कभी कोर्ट तो कभी चुनाव आयोग पर आरोप लगा देती है आखिर ऐसा कब तक चलेगा?
यह टिप्पणी पुनीत सिंह ने लोकल डिब्बा के लिए लिखी है।