फिर से अपनी बूढ़ी हड्डियां जलाने क्यों आ रहे हैं अन्ना हजारे?

एक ‘सनकी’ बूढ़ा दिल्ली की कड़कड़ाती ठंड में फिर से अपनी हड्डियां जलाने आ रहा है। सोशल मीडिया और वॉट्सऐप ग्रुप्स में उसको गालियां दी जाने लगी हैं। 2011 और 2018 में देश के लिए भूख हड़ताल पर बैठ चुके अन्ना हजारे ने एक बार फिर से ऐलान किया है कि वह लोकपाल के गठन के लिए आमरण अनशन करने जा रहे हैं।

2011 में वह अन्ना का आंदोलन ही था, जिसकी तुलना जेपी के आंदोलन से की गई। दशकों बाद पहली बार देश की जनता बिना किसी पार्टी के बैनर तले इतनी भारी संख्या में जुटी और इस आंदोलन का असर जमीन पर दिखने लगा। जमीन तैयार हुई, जमीन को खाद-पानी केजरीवाल, किरण बेदी और तमाम लोगों ने दिया। मौका आया तो फसल काटने में भी केजरीवाल सबसे आगे रहे। अन्ना सबको रोकते रहे कि राजनीति में मत उतरो लेकिन केजरीवाल का कहना था कि कीचड़ साफ करना है तो उसमें उतरना ही पड़ेगा। खैर, अन्ना मायूस हो गए और अपने गांव लौट गए। उसके बाद गाहे-बगाहे केजरीवाल को कोसते नजर आए।

 

2011 के आंदोलन का फायदा तत्कालीन विपक्ष ने भी उठाया। कांग्रेस के खिलाफ माहौल बन रहा था, उसी समय नरेंद्र मोदी ने खुद को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया। अपने चुनावी वादों में उन्होंने लोकपाल के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और कहा कि उनकी सरकार बनी तो लोकपाल कानून लाएंगे। नरेंद्र मोदी की ब्रैंड हिंदुत्व और विकासवादी व्यक्ति की छवि ने 2014 में उनको सत्ता दिला भी दी। हालांकि, यह बात अलग है कि आजतक लोकपाल का ना तो गठन हुआ और ना ही केंद्र में लोकपाल की नियुक्ति हुई।

फिलहाल कई राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त हैं। यह बात अलग है कि अभी वे पंगु ही हैं क्योंकि अभी तक ऐसा कोई एक भी मामला नहीं सामने आया है, जिससे यह पता चलता हो कि भारत में लोकायुक्त या लोकपाल जैसी कोई संस्था है भी। ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार से कई मुद्दों पर नाराज चल रहे अन्ना हजारे एक बार फिर से दम बांधने को तैयार हैं।

 

अन्ना पर तमाम तरह का एजेंट होने के आरोप लगाए जाते हैं। हालांकि, इनमें से एक भी कभी साबित होने की तरफ भी नहीं बढ़े। अन्ना के चेलों में से कोई मंत्री, कोई मुख्यमंत्री तो कोई उप-राज्यपाल बन गया। मांग सबकी एक थी कि लोकपाल चाहिए लेकिन अब किसी को लोकपाल नहीं चाहिए। शायद अन्ना ही वह हैं, जिन्हें लोकपाल अभी भी चाहिए। अन्ना को अभी भी डर रहता है कि उनके आंदोलन से कोई दूसरी केजरीवाल न निकले इसलिए पिछली बार उन्होंने लोगों से स्टैंप पेपर पर शपथ लिखवा ली थी। देखते हैं कि अन्ना को इस बार भी वह डर सताता है या नहीं। या अन्ना बिना दूसरा केजरीवाल पैदा किए ही लोकपाल की मांग पूरी करवा पाते हैं।