हमारा कानून इस सिद्धांत पर चलता है कि चाहे 100 दोषी छूट जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। इस सिद्धांत पर ही सवाल उठना चाहिए 100 दोषी क्यों छूट जाएं? अगर एक हत्याकांड/बम ब्लास्ट में 10 लोग मारे जाते हैं और कुछ सालों में सभी आरोपी बरी हो जाएं तो उन 10 लोगों को न्याय कहाँ मिला? क्यों ना यह सवाल निर्दोष आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट बनाने वाले और जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों से पूछे जाएं कि जिनको आपने कानूनी कार्यवाही में सालों उलझाए रखा, उसका क्या आधार था?
ताजा मामला भले ही हैदराबाद की मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस से जुड़ा है लेकिन यह सवाल हमारी न्याय व्यवस्था को हमेशा असहज कर सकता है। अब जैसा कि फैसला आया है कि इस ब्लास्ट के पांचों आरोपियों के खिलाफ सबूत ना होने की वजह से उन्हें बरी किया जाए। मतलब किसी को भी किसी मामले में उठा लीजिए, सालों उसको कोर्ट का चक्कर लगवाइए और फिर कह दीजिए की नहीं-नहीं आपके खिलाफ तो सबूत ही नहीं है।
हम अगर खुद पर उस तरह का केस अप्लाई करें तो इसे और बेहतर समझ सकते हैं। आपको किसी भी केस में गिरफ्तार किया गया, चाजर्शीट में लंबी-चौड़ी धाराएं लगा दी गईं। सालों तक आपको जेल में रखा गया। आपको जमानत भी नहीं मिलेगी क्योंकि आप संजय दत्त या सलमान खान नहीं हैं। आपके करियर के 4-5 महत्वपूर्ण साल निकल गए फिर एक दिन ‘माननीय न्यायालय’ का फैसला आता है कि आप तो निर्दोष हैं जी। अब आप क्या करेंगे?
क्या आपके खिलाफ चार्जशीट फ़ाइल करने वाले अधिकारियों को लिखित में माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए? चलिए माफ़ी मांग लिया भी तो आपके उन 4-5 सालों का क्या? वो कौन लौटाएगा? यकीन मानिए इसका जवाब हम तभी दे सकते हैं, जब तक खुद ऐसे किसी मामले में ना फंसाए गए हों। अगर आप इस तरह ‘निर्दोष’ साबित किए गए होंगे तो आप जवाब देने की हालत में नहीं होंगे।
दूसरी तरफ यह सोचिए कि आपको एक बम ब्लास्ट केस में आरोपी बनाया गया, आतंकवादियों की तरह सालों तक आपका ट्रायल चला। आप निर्दोष थे और दोषी फरार। सालों बाद आप निर्दोष कह दिए जाएंगे लेकिन यह नहीं पता चल पाएगा की मामले का असली दोषी कौन है। पूरा का पूरा मामला राजनीतिक साजिश भी हो सकता है और मारे गए, फंसाए गए लोग नेताओं और पार्टियों के मोहरे भी हो सकते हैं।
मारे गए लोग संख्या के आधार पर अखबारों का स्पेस कब्जाएंगे, कुछ मुआवजा और सहानुभूति देकर विदा कर दिए जाएंगे। अंत में साबित हो जाएगा कि ‘किसी ने ब्लास्ट ही नहीं किया’, जिसके घर का कोई मरा होगा वह सिर्फ न्याय की देवी को आँखों में पट्टी बांधे खुद से भी लाचार देखता रह जाएगा।