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क्या ममता दीदी, मोदी भइया का दिवाला निकालने में कामयाब हो जाएंगी?

प्रधानमंत्री मोदी के साथ ममता बनर्जी

नमस्कार मैं चकित पत्रकार! कुछ बातें हमारे कानों में चींटी की तरह हलती हैं और चुप्पी दाब के निकल जाती हैं. जब तक दिमाग कुछ सोचने का कष्ट करे तब तक मैटर डिसलोकेट हो जाता है. मैटर है ममता बनर्जी का. तीसरा मोर्चा. भले ही इस मोर्चे में 7 से ज्यादा बार मुर्चा(जंग) लग गई हो लेकिन इस बार मोर्चे की तैयारी दब के हो रही है. आसान बिलकुल भी नहीं है लेकिन ममता बनर्जी और शरद पवार भरपूर हाथ-पांव मार रहे हैं. मारना भी चाहिए, लालू, मुलायम और नीतीश कुमार के भी अरमान थे कभी मुख्यमंत्री बनने के लेकिन किस्मत ने गच्चा दे दिया. ठीक वैसे ही जैसे कि आडवाणी साहब की किस्मत उन्हें न तो प्रधानमंत्री बनने दिया न ही राष्ट्रपति.

क्यों बन रहा है तीसरा मोर्चा?
अगर शरद पवार साहब न्यूज एंकर होते तो वह कह सकते थे, ‘नमस्कार, मैं सूत्रधार शरद पवार. लेकिन पवार साहब ठहरे नेता. उनमें भी प्रधानमंत्री बनने का वही अरमान है जो कभी क्षेत्रीय दल के नेताओं के मन में रह है. किसी को राहुल गांधी की अध्यक्षता वाले कांग्रेस पार्टी के बैनर तले रहना नहीं पसंद है.
दरअसल तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनर्जी के साथ कई क्षेत्रीय पार्टियां नहीं चाहती हैं कि तीसरे मोर्चा राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाए. वाम मोर्चा भी नहीं.

क्या होगी दीदी की राजनीति?
2019 आने में कुछ ही महीने बचे हैं. लोकसभा चुनाव भी होने वाले हैं. राजनीतिक पार्टियों का बौखलाना समझ में आता है. कांग्रेस को छोड़कर सारे राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है. कांग्रेस इसलिए नहीं क्योंकि राहुल गांधी ही जब सर्वेसर्वा बने हैं तो पार्टी का भला होने से रहा. मम्मी क्या-क्या संभालेंगी. इसी कड़ी में मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मात देने के लिए गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी मोर्चा बनाने के लिए हर राज्‍य में क्षेत्रीय पार्टियों को समर्थन देंगी. यूपीए-2 में रेल मंत्री रहीं ममता कांग्रेस को अपनी महत्वाकांक्षाओं की वजह से भी किनारे लगा रही हैं. तीसरे मोर्चे के सिलसिले में ममता शिवसेना नेता संजय राउत, एनसीपी नेता शरद पवार से गुप्त मंत्रणा भी कर चुकी हैं.

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बीजेपी ने जिन्हें ठुकराया, ममता ने उन्हें अपनाया
ममता बीजेपी के नाराज नेताओं अरुण शौरी, शत्रुघ्‍न सिन्‍हा, यशवंत सिन्‍हा के साथ मिलीं. बिहारी बाबू अपनी पार्टी के कुमार विश्वास हो गए हैं. मतलब मालिक के ही खिलाफ जम के गरियाते हैं. ममता ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद संजीव कुमार और टीएसआर के केशव राव, राजद से मीसा भारती से भी मुलाकात कर ली है. इन चेहरों की महत्ता से कोई इनकार नहीं कर सकता. ममता ने जम के किलेबंदी की है. भाजपा को हराने के लिए उन्हें लग रहा है क्षेत्रीय दलों का सहयोग पर्याप्त हो सकता है. तभी उन्होंने कहा भी था कि अगर माया और अखिलेश मिल जाएं तो मोदी का रथ रुक जाएगा.

वैसे गलत तो कतई नहीं हैं ममता
मिले मुलायम-कांशी राम….इस कहावत को हर कोई जानता है. अगर क्षेत्रीय दलों ने सयहोग किया तो ममता को अच्छा जनसमर्थन मिल सकता है. अलग बात है तीसरा मोर्चा 7 बार बनते-बनते रहा है. इसलिए कहा नहीं जा सकता कि यह पक्की खबर है कि मामला सुलझ जाएगा और महागठबंधन जैसी कोई चीज सामने आएगी जो अपनी स्वायत्तता कांग्रेस को नहीं सौंपेगी.

कितना मजबूत होगा तीसरा मोर्चा?
अगर ममता 12 दलों को साथ लाने में सफल हो जाती हैं तो उनके पास 172 सांसदों की टीम इकट्ठी हो जाएगी. गौरतलब है कि इस दल में कांग्रेस भी शामिल है. सीधे तौर पर उन्हें कांग्रेस से दिक्कत कम और राहुल से ज्यादा है. शायद ममता राहुल को मिले उत्तराधिकार वाले पद से खुश नहीं हैं. फिलहाल लोग महागठबंधन होने में अथाह रोड़े हैं. गठबंधन में कोई किसी से कम साबित नहीं होने वाला. जब मामला बराबरी का हो तब तो कमर क्यों न टेढ़ी हो जाए. वैसे नौ सो रोड़े हैं इस राह में. कांग्रेस के अलावा गठबंधन चलाने में कामयाब और दल कम ही होते हैं. ममता कितना कामयाब होंगी यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन अभी इस सम्मेलन में बड़ा किक है यार.
मतलब गांव वाली कहावत याद आ गई है
नाऊ-नाऊ केतना बार
देखू बाऊ समनवैं आई.

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