गौरी लंकेश मार दी गईं। गौरी गुनाहगार थीं। धर्म की आलोचना करती थीं। कुलबर्गी की तरह उन्हें भी हिंदू दर्शन में ख़ामियां नज़र आती थीं।
उनके लिखने से धर्म विशेष का अपमान हो जाता था।
उन्हें जीने का हक़ नहीं था क्योंकि परंपराओं पर चोट करती थीं। भाजपा और संघ का अपमान करती थीं।
गौरी का ट्विटर चेक करने पर पता चला कि वे महिला उत्पीड़न पर भी कलम चलाती थीं। गौरी हर उस विधि विधान के विरुद्ध थीं जिन्हें माध्यम बनाकर शोषण किया जा रहा था।
गौरी यूआर अनंतमूर्ति, कलबुर्गी, पी लंकेश, पूर्ण चंद्र तेजस्वी जैसे कलमकारों की राह पर चल रही थीं। उन्हें समाज ज़िंदा कैसे छोड़ता?
जब तक अपराधी पकड़े न जा सकें तब तक कुछ कहना तो ग़लत होगा लेकिन यह सच है कि लोग विरोधी विचार सुनने के प्रति निहायत ही असहिष्णु हो गए हैं।
धार्मिक अतिवाद देश को ऐसे मुहाने पर ले जाकर छोड़ेगा जहां से पाकिस्तान और हममें कोई अंतर नहीं रह जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो भारत माता अपनी ही संतानों से पराजित हो जाएंगी, फिर चाहे जितना चिल्लाते-चिल्लवाते रहिए, माता की जय तो नहीं होने वाली।
जय हिंद।
वंदे मातरम्।
फ़ीचर इमेज सोर्स- टाइम्स ऑफ़ इंडिया