X

देश की राजनीति की दिशा बदल पाएंगे ये 6 न्यूकमर्स?

इस बार के लोकसभा चुनाव में कुछ युवा नेता अच्छी-खासी चर्चा बटोर रहे हैं। कुछ अपने बयानों को लेकर, कुछ अपने ट्रैक रेकॉर्ड को लेकर तो कुछ राजनीति में एंट्री के तरीके को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। पक्ष हो या विपक्ष, ये नेता जीते या हारें लेकिन 2019 के इस लोकसभा चुनाव में मुख्य आकर्षण बने हुए हैं। इसमें से ज्यादातर नेता पढ़े-लिखे और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े हुए रहे हैं। सभी अलग-अलग पार्टियों से हैं, अलग-अलग विचारधारा के पोषक हैं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में न्यूकमर हैं।

चंद्रशेखर आजाद
सहारनपुर में 2017 में हुई हिंसा के बाद गिरफ्तार हुए चंद्रशेखर ने 2019 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। खुद की ‘भीम आर्मी’ बनाने वाले चंद्रशेखर को पश्चिमी यूपी में काफी समर्थन मिल रहा है लेकिन नरेंद्र मोदी के खिलाफ ये समर्थन कैसा रहेगा यह देखना होगा। हालांकि, अभी तक जिस तरह जिद्दी और अड़ियल किस्म का रवैया चंद्रशेखर का रहा है, उससे कहा जा रहा है कि यह आदमी इतनी जल्दी शांत नहीं होने वाला है। बीएसपी चीफ मायावती ने लगातार चंद्रशेखर को इग्नोर किया है और आलोचना भी है। वहीं, चंद्रशेखर और उनकी भीम आर्मी थोड़ी-बहुत कांग्रेस के साथ दिखाई पड़ रही है। सहारनपुर लोकसभा सीट पर भीम आर्मी ने कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद का समर्थन भी किया है।

 

पढ़ें: चंद्रशेखर की जेल से रिहाई बीजेपी की चालाकी थी या मूर्खता?

कन्हैया कुमार
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और देशद्रोह के केस में आरोपी कन्हैया कुमार अब बाकायदा नेता बन गए हैं। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया यानी सीपीआई ने उन्हें केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ बिहार की बेगूसराय से चुनाव में उतारा है। क्राउड फंडिंग से पैसा जुटाकर चुनाव लड़ रहे कन्हैया खुद को गरीब और दबे-कुचलों की आवाज के रूप में पेश करते हैं। हालांकि, गिरिराज सिंह के खिलाफ कन्हैया की लड़ाई काफी कठिन है। आरेडी-कांग्रेस गठबंधन ने भी सीपीआई की साथ नहीं दिया है, इसलिए मामला त्रिकोणीय बताया जा रहा है। इसके बावजूद अगर कन्हैया कुमार संसद पहुंचते हैं तो सदन में उनका ट्रेडमार्क ‘आजादी’ स्टाइल काफी मजेदार हो सकता है।

 

लोकसभा चुनाव: क्या भारत में भी दो वोट देने की सुविधा होनी चाहिए?

Related Post

अतिशी मर्लेना
शायद इन सबमें सबसे कम चर्चा अतिशी मर्लेना की हो रही है। इसके बावजूद वह काफी डिजर्विंग कैंडिडेट हैं। शिक्षा के क्षेत्र में काम करनेवाली अतिशी आम आदमी पार्टी की ओर से पूर्वी दिल्ली सीट से लोकसभा की उम्मीदवार हैं। वह दिल्ली के शिक्षा मंत्री की सलाहकार हैं। अतिशी के काम की बदौलत दिल्ली के सरकारी स्कूलों में काफी बदलाव हुए हैं, जिनकी तारीफ हर तरफ हुई है। हालांकि, अतिशी का लोकप्रिय नेता ना होना ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी हो सकता है। इसके अलावा दिल्ली में आम आदमी पार्टी का लगातार गिरता ग्राफ भी उनके लिए चिंता का विषय है। फिर भी अगर वह जीतकर लोकसभा में पहुंचती हैं तो सदन को अच्छा काम करनेवाली एक और नेता मिल जाएगी।

 

इमरान प्रतापगढ़ी
शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने बीजेपी के खिलाफ लगभग हर पार्टी का प्रचार किया है और उसके लिए मुशायरे किए हैं। अपनी वाकशैली और शायरी के दमपर युवाओं में जबरदस्त लोकप्रिय इमरान को कांग्रेस ने मुरादाबाद से लोकसभा चुनाव में उतारा है। इमरान का दावा है कि उन्होंने हर जगह सामाजिक सरोकार के लिए काम किया है। अकसर उन्हें हादसों में मारे गए लोगों के परिवारों के साथ भी देखा जाता है। मॉब लिंचिंग में मारे गए लोगों के लिए जंतर-मंतर पर रैली करके ब्लड डोनेशन कैंप आयोजित करने वाले इमरान नरेंद्र मोदी और बीजेपी के कट्टर आलोचकों में गिने जाते हैं। उनका सदन में पहुंचना सदन की बहस को नई दिशा दे सकता है।

तेजस्वी सूर्या
आईटी एक्सपर्ट और वकील तेजस्वी सूर्या सिर्फ 28 साल के हैं और बीजेपी ने उन्हें बेंगलुरु साउथ सीट से उम्मीदवार बनाया है। नाम अनाउंस होन के बाद से ही तेजस्वी सूर्या मीडिया की आंखों का तारा बन गए हैं और पूरे देश में उनकी चर्चा है। पढ़े-लिखे और तेजतर्रार वक्ता तेजस्वी टीवी डिबेट्स में भी अपना पक्ष शालीनता के साथ रखते हैं, ऐसे में युवाओं में उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। इस सीट पर 1996 से लगातार अब तक बीजेपी जीतती आई है, ऐसे में इस बात के ज्यादा चांस हैं कि तेजस्वी चुनाव जीत जाएंगे। तेजस्वी का सदन में पहुंचना बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है और सदन को एक युवा जोश मिल सकता है।

 

प्रियंका गांधी
लंबे समय के बाद औपचारिक रूप से राजनीति में उतरीं प्रियंका गांधी संभवत: चुनाव नहीं लड़ेंगी। हालांकि, उनके आने से कांग्रेस ने यूपी में अकेले लड़ने की हिम्मत दिखाई है। कई सीटों पर कांग्रेस एसपी-बीएसपी की गणित खराब कर रही है तो कई सीटों पर वह लड़ाई में भी है। प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया गया है लेकिन वह 2019 पर कम 2022 पर ज्यादा फोकस कर रही हैं। इसी रणनीति के तहत अलग-अलग पार्टियों से गठबंधन और कई बड़े नेताओं को प्रियंका ने कांग्रेस में शामिल करा लिया है। भविष्य में यह देखा जा सकता है कि प्रियंका की जिम्मेदारी कांग्रेस में और बढ़े और अगर उनकी मेहनत रंग लाती है तो कांग्रेस आने वाले कुछ सालों में वापसी भी कर ले।

संबंधित पोस्ट