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ज़्यादातर फ़िल्में शुक्रवार के दिन ही क्यों रिलीज़ की जाती हैं?

शुक्रवार को ही क्यों रिलीज़ होती हैं फ़िल्में

जब से ओटीटी, यूट्यूब और पाइरेसी जैसी चीजें सामने आई हैं, फिल्में हर जगह मिलने लगी हैं. अब इनके रिलीज़ होने का ट्रेंड भी थोड़ा बदल सा गया है. फिर भी आप इतना तो जानते ही होंगे, कि लंबे समय से बॉलिवुड की फ़िल्में शुक्रवार को रिलीज़ होती हैं. लेकिन ये कभी जानने की कोशिश की कि शुक्रवार को ही क्यों? किसी भगवान या अल्लाह का तो इससे लेना देना नहीं है? यही सब जानने का कीड़ा हमारे अंदर भी बहुत है, इसलिए हमने खोजबीन कर डाली और आपको बताने आ गए. तो सुनिए

1960 में हुई शुक्रवार रिलीज़ की शुरुआत

शुरू-शुरू में ऐसा नहीं था. पचास के दशक में ये शुक्रवार वाले खेल की शुरुआत हुई. इसके पहले 24 मार्च 1947 को फिल्म नीलकमल रिलीज हुई थी. ये दिन सोमवार का था. मशहूर फिल्म मुग़ल-ए-आज़म पहली ऐसी फिल्म थी जो शुक्रवार को रिलीज हुई. मुग़ल-ए-आज़म 5 अगस्त 1960 को रिलीज़ हुई थी.  

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ये मामला इतना सही फिट बैठा कि मुंबई में कई जगहों पर कर्मचारियों को शुक्रवार को हाफडे मिलने लगा जिससे लोग फ़िल्में देखने जा सकें. प्राचीन काल में शनिवार और रविवार को छुट्टी भी होती थी. इसलिए धांसू वीकेंड बन जाता था. अब ये सुनकर हफ्ते में किसी भी एक दिन को वीक ऑफ लेकर पूरे हफ्ते काम करने वाले लोगों को बहुत दुख होगा, लेकिन सच्चाई तो यही है. आज भी बहुत लोग शनिवार-रविवार छुट्टी पाते हैं. 

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अच्छी-खासी हो जाती है कमाई

शुक्रवार का मामला कोरोना काल से पहले भी बढ़िया चल ही रहा था. कारण है कि शनिवार-रविवार को लोग घूमने और शॉपिंग करने निकलते ही हैं तो पिच्चर भी देख लेते हैं. और सलमान खान की फ़िल्में भी तीन-चार सौ करोड़ कमा ले जाती हैं. कहा जाता है कि ये आइडिया भी हॉलिवुड से चेपा गया है क्योंकि वहां 1939 में ही शुक्रवार को फिल्में रिलीज हो रही थीं. तो जैसे-जैसे भारत में पइसा कमाने का क्रेज आया, ये शुक्रवार भी चला आया.

थोड़ा बहुत ज्योतिष भी फॉलो होता है

एक और लॉजिक इसके पीछे है. दरअसल, फिल्म में पइसा लगाते हैं व्यापारी लोग. और पइसा लगाने वाला आदमी वास्तु, लक्ष्मी फलाना-ढिमकाना बहुत मानता है. शुक्रवार को शुभ माना जाता है कि इसलिए उसे लगता है कि इस दिन फिल्म रिलीज होगी तो पइसा ज्यादा बनेगा. ध्यान रहे कि ये फिल्म बनाने वालों का मानना है, हमारा नहीं.

कुछ फ़िल्मों ने ट्रेडीशन तोड़ा भी है

खैर, कुछ दूसरे तरह के कीड़े वाले लोग भी होते हैं. जो किसी ट्रेडीशन को तोड़ने में भरोसा रखते हैं. कई फिल्में ऐसी भी हैं, जो शुक्रवार को रिलीज नहीं भी होती हैं. जैसे भाई की सुल्तान और राकेश ओम प्रकाश मेहरा की रंग दे बसंती. तो पइसा वाला लॉजिक जाता रहा. और कमाई होती रही. कुल मिलाकर 21वीं सदी में सारे ट्रेडिशन टूट रहे हैं, सो ये भी टूट ही गया है. फिर भी ज्यादातर फिल्में शुक्रवार को ही रिलीज हो रही हैं.

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