दुनिया में दीवारों की कमी नहीं है। अनगिनत दीवारें हैं। हर घर में कई दीवारें हैं जिन पर छत टिकी है और उन छतों पर उम्मीदों का आसमान बिछा है। देश दुनिया की मशहूर दीवारों में चीन की दीवार है जिसे दुनिया का अजूबा माना गया है। जर्मनी को बाँटती मशहूर बर्लिन की दीवार है जो अब केवल नाम के लिये रह गयी है। कई देशों के बीच दीवार है , भारत में भी चित्तौड़ की प्रसिद्ध दीवार है।
हर दीवार की अपनी कहानी है। या यूँ कहें कि हम दीवार के या तो इस पार रहते हैं या उस पार। और फिर जैसा कि कहते हैं कि धीरे से बोलो दीवारों के भी कान होते हैं तो हर दीवार ने बहुत कुछ सुन रखा है। दर्द भरी दास्तान भी , हँसी व हसरतों की हरकत भी। हजारों साल पुरानी दीवार हो या कुछ दशक पुरानी दीवार, हर दीवार के इन ना दिखने वाले कानों ने बहुत कुछ सुना है मगर शायद कभी कहा किसी से नहीं । ऐसी भी बहुत सी दीवारें हैं जो बहुत कुछ कहती रही हैं सदियों से, जो बताती रही हैं युगो की दास्तां, कालों की कहानी ,शताब्दियो का संघर्ष क्योंकि गुफाओं की दीवारो पर की गयी वे चित्रकारियाँ दस्तावेज बन गयी हैं उस दौर की, जब आज जैसा कुछ नहीं था। इन दीवारो पर लिखी गयी पंक्तियाँ , बनाई गयी तस्वीर जबान बन गयी हैं दीवारो की। इन दीवारो की अदृश्य आँखो ने इतना कुछ समेट लिया है कि अगर बयान कर दें उन संघर्षो का,उन क्रूर कालों का , उस साहसी समय का , उस जज्बाती जोश का तो यकीनन रोंगटे खडे हो जायेंगे सुनने वाले के। इन दीवारों की बुनियादों में दर्ज हैं सैकडो कहानियाँ जिन्हें ये कहना चाहती हैं, सुनाना चाहती हैं मगर आवाज नहीं है इनके पास । इतना सब देखने ,सुनने व सहने के बाद अब इन दीवारो के कान के साथ साथ दिल भी उग आया है और यह दिल धडक रहा है। भुखमरी ,गरीबी व लाचारी झेल रहे मानव के लिये। आज दुनिया में तमाम सुख सुविधाये होने के बावजूद दुनिया का एक बडा हिस्सा रोजमर्रा की जरूरतों के लिये जूझ रहा है। तमाम उपलब्धियों के बाद भी अभाव है।
मानव की इन सब जरूरतों व तकलीफों को देखकर और सुनकर अब इन दीवारो के भी हाथ उग आते हैं जो लोगो की मदद की लिये उठ खडे हुए हैं। कोई भी अभावग्रस्त हाथ बढाकर अपनी जरूरत का सामान इन दीवारो से ले सकता है। चौंकिये मत की ये क्या ऊँटपटांग बात कर रहे हों। दीवारों के दिल व हाथ जैसी हास्यापद जैसी बात ,मगर ये सच हुआ है ईरान में । वह ईरान जो कभी अपने इतिहास व पराक्रम के लिये एशिया की बडी ताकतो में शुमार रहा, जहाँ साइरस से लेकर दारा तक जैसे बेजोड़ शहंशाह रहे हैं ।
मगर अब ईरान बदहाली झेल रहा है । पश्चिमी देशों ने परमाणु विवाद को लेकर ईरान पर दुनियाभर के आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये हैं जिससे ईरान की अर्थव्यवस्था की कमर टूट चुकी है ,वहाँ बदहाली व बेरोजगारी फैल गयी है। बेकारी व आर्थिक तंगी ने ईरान को निचोड कर रख दिया है ।
इस संकटग्रस्त समय में वहाँ के एक सज्जन सज्जाद बोउवार्द ने एक ऐसा काम किया जो मिसाल के तौर पर दुनियाभर में सराहा गया। 2015 में जब सर्दी अपने शबाब पर थी सज्जाद ने वहाँ भीषण सर्दी में लोगो को ठिठुरते देखा जिनके पास ना घर था ना ही ओढने व पहनने के ढंग के गर्म कपडे। इस तंगहाली व बदहाली को देखते हुए सज्जाद के दिमाग में एक नया विचार आया क्यों ना इन बेघर लोगों की मदद की जाये व इसका इंतजाम किया जाये । उन्होने एक नायाब तरीका खोजा जिसमें जरूरतमंदो की जरूरत भी पूरी हो व उन्हें किसी के आगे हाथ भी ना फैलाने पडे । और यह वाकई कारगर निकला और इस तरह अस्तित्व में आई ” दयालुता की दीवार यानी वाल ऑफ काइंडनेस।
सज्जाद ने एक बडी सी सार्वजनिक दीवार पर कुछ हुक टंगवाये व खूंटी गाड दी व एक मर्मस्पर्शी वाक्य पुतवा दिया ; ‘जिनके पास अधिक है यहाँ छोड जाएँ ,जो आपकी जरूरत है यहाँ से ले जाएँ। ‘ इस दीवार को सज्जाद बोउवार्द ने नाम दिया `वाँल आँफ काइंडनेस ” यानी दयालुता की दीवार। सज्जाद का यह नेक आइडिया जैसे ही ग्लोबल विलेज के सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वैसे ही उनके इस नेकनीयत के काम व सेवा की भावना को सराहना व समर्थन मिलता गया।
नेकी की यह पहल जबरदस्त कामयाब हुई कि आज इस दीवार पर केवल गर्म कपडे ही नहीं बल्कि रोजमर्रा की जरूरत का सामान उपलब्ध है जैसे कि जूती ,चप्पल से लेकर तेल , गेहूँ जैसी खाद्य सामग्री भी । लोग अपने घरो से निकलकर यहाँ जरूरत की चीजो को रख जाते हैं जिन्हें जरूरत होती है वो यहाँ से उठा ले जाते हैं । मदद का एक अलहदा ही तरीका है ना दान देने का घमंड ना हाथ फैलाने का झंझट। ईरान की राजधानी तेहरान में भी बहुत से दुकानदारो ने यह पहल अपनाकर इसी सोच के साथ दुकानो में फ्रिज रखवा दिये हैं कि बेघरो के लिये इन फ्रिजो में खानपान की चीजे रख दी जायें। ऐसे ही बेकरी वालो ने ब्रेडबाँक्स रखवा दिये हैं ताकि जो लोग ब्रेड व अंडे नहीं खरीद सकते ,उनके लिये लोग कुछ ब्रेड व अंडे रख जायें, जहाँ से ये ये बेघर लोग इन्हें ले सके। ये होता है सेवा व सहायता का जज्बा ।
इस तरह की पहल में मानवीय पहलू है साथ ही समझदारी का कोना भी है क्योंकि इसमें कोई दानदाता अपने दान देने का ढिंढोरा नहीं पीटता ,ना ही अपनी चैरिटी की डींगे हांकता साथ ही दानकर्त्ता भी अपने को दबा हुआ व बोझिल महसूस नहीं करता।
यह दयालुता की दीवार इंटरनेट के दौर में देश दुनिया में मशहूर हो गयी है व देखादेखी कई जगह ऐसी दीवारें खडी हो गयी हैं जो अभावग्रस्त लोगो के जीवन के अभाव को एक हद तक दूर कर रही हैं ।
भारत में भी कई जह ऐसी ही नेकी की दीवार बन गई हैं जहाँ हुक टंग गये हैं और लोग गर्मजोशी व दयाभाव से चीजे टांग रहे हैं ताकि किसी के काम आ सकें।
अब इन दीवारों ने मानवता की करुण पुकार को सुन ली है और इन दीवारो के दिल पसीज उठे हैं। आगे बढकर इन दीवारों ने हाथ फैलाये हैं इंसानियत के लिये , इंसानी जरूरतों के लिये, इंसानी जिंदगी में खुशियां भरने के लिए।
इंसानियत इन दीवारों की एहसानमंद है।
( इस आलेख को लिखा है मनीष पोसवाल ने। मनीष Esselshyam- Planetcast media services Ltd में Broadcast Assistant हैं)