सच कहने की आजादी से महरूम हैं हम
विरोध करने की आजादी में मशरूफ हैं हम
इंसान की कौम का कुछ भी पता नहीं
धर्मों के बटंवारे की राजनीति में मशरूफ हैं हम
रावण को राम ने मारा नारी की मर्यादा की खातिर
नारी का शील हनन करने में लेकिन मशरूफ है हम
नन्हें कर्णधार हमारे भारत की बगिया के
उन्हीं बगिया के फूलों को कुचलने में मशरुफ हैं हम
जहाँ पर कलम अखबार से कभी क्रांति आयी थी
उसी कलम को तोड़ने पर मशरूफ हैं हम
विरोध करने की आजादी में मशरूफ हैं हम
श्वेता पांडेय ‘सांझ’