‘देश बचाने’ के नाम पर इकट्ठा होता मुद्दा विहीन विपक्ष क्या करेगा?

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कई बार कई नेताओं ने अपने हक में बयार चलाने की कोशिश की है। पहले मायावती, फिर ममता बनर्जी और अब चंद्रबाबू नायडू। ममता और मायावती ने विपक्ष के तमाम नेताओं से मुलाकात करके विपक्ष को गोलबंद करने की कोशिश की लेकिन असफल रहीं। अब चंद्रबाबू नायडू वही कोशिश करते दिख रहे हैं। इस कोशिश में चंद्रबाबू नायडू उसी कांग्रेस की गोदी में जा बैठे हैं, जिसको कुछ महीने पहले तक ही कोसते आ रहे थे।

 

खुद चंद्रबाबू नायडू ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की और बयान दिया कि पुरानी बातों को भूलकर देश और लोकतंत्र को बचाने के लिए साथ काम करेंगे। अब नायडू इन पुरानी बातों में क्या-क्या भुलाना चाहते हैं और क्या नहीं ये तो वही जानें। हां, इतना जरूर है कि उन्होंने यह जरूर साबित किया है कि इस देश के राजनेताओं की किसी भी बात पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए।

 

चंद्रबाबू नायडू ने राहुल के अलावा एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और नैशनल कॉन्फ्रेंस चीफ उमर अब्दुल्ला से भी मुकालात की। राहुल गांधी ने भी यहां चालाकी दिखाई और नायडू के बयान से सहमति जताते हुए देश बचाने का ठेका ले लिया। कितने मासूम हैं हम लोग भी जो इन ‘देश बचाने’ वालों के झांस में आते हैं, जोकि देश के नाम पर सिर्फ अपना राजनीतिक वजूद संभालने की कोशिश में लगे हुए हैं। एक देश बचाने वाले साहब साढ़े चार साल में कैसा देश बचा रहे हैं, सब देख ही रहे हैं। दूसरे पक्ष के नाम पर एक और जमघट तैयार हो रहा है जो देश बचाने का दावा किए जा रहा है।

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कमाल की बात है कि देश बचाने के नाम पर इकट्ठा हो रहे इन लोगों के पास मुद्दे के नाम पर सिर्फ कुछ वही बातें हैं, जो हर विपक्ष सत्ता पक्ष के खिलाफ कहता रहता है। यानी की ‘लोकतंत्र पर खतरा’ और ‘देश की रक्षा’, अंग्रेजी में यही ‘सेव नेशन, सेव डेमोक्रेसी’ हो जाता है। राहुल गांधी राफेल के मुद्दे पर लगातार बीजेपी सरकार को घेरने में लगे हुए हैं। हालांकि, बाकी दूसरे दल खुद मुद्दों पर सत्ता को घेरने की बजाय या तो राहुल गांधी के पीछे खड़े हो रहे हैं या फिर बेवजह के मुद्दों पर अपनी ढपली अपना राग गाने में लगे हुए हैं।