21 साल पुराना हादसा, जिसने दिल्ली को सिग्नेचर ब्रिज दिया

हादसे किसी भी तरह से अच्छे नहीं होते लेकिन यही हादसे कई बार अच्छी चीजों की नीव पड़ने की वजह बन जाते हैं। एक ऐसा ही हादसा दिल्ली में हुआ, जिसके 21 साल बाद दिल्ली में सिग्नेचर ब्रिज तैयार हुआ है। आप सोच रहे होंगे कि हादसे से भला सिग्नेचर ब्रिज का क्या कनेक्शन? दरअसल, इस ब्रिज के निर्माण की सोच ही उस हादसे के पीछे छिपी हुई है।

 

18 नवंबर 1997 की सुबह भी दिल्ली के लिए रोज की ही तरह थी लेकिन 7:15 बजे आई एक खबर के बाद सबकुछ सनसनी में बदल गया। सरकारी महकमा यमुनापार को दिल्ली से जोड़ने वाले एक पुल की ओर दौड़ पड़ा। खबर थी कि एक स्कूल की बस पुल से नीचे गिर गई है। बुरी खबर यह थी कि इस बस में 120 बच्चे और कुछ टीचर भी थे।

 

10 फीट चौड़े फुटपाथ को पारकर नदी में गिरी बस
कश्मीरी गेट में पड़ने वाले लुडलो कैसल स्कूल की यह बस यमुनापार से बच्चों को लेकर स्कूल की ओर जा रही थी। वजीराबाद बैराज के पास बने ब्रिज पर ड्राइवर ने बस की रफ्तार बढ़ा दी। बस रोड पर एकदम किनारे की ओर थी, अचानक ड्राइवर ने संतुलन खो दिया और एक फिट ऊंचे और 10 फीट चौड़े फुटपाथ और पुल की रेलिंग को तोड़ते हुए नदी में जा गिरी। यमुना किनारे झोपड़ियों में रहने वाले लोग नवंबर की ठंड में अपनी जान की परवाह न करते हुए नदी में कूद पड़े। आनन-फानन में 10 से ज्यादा बच्चों को बचाया गया।

 

तस्वीर साभार: बीबीसी न्यूज

तस्वीर साभार: बीबीसी न्यूज

बैराज बंद करने में लगे समय ने रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी कर दी। बस के नदी में गिरने के बाद दो घंटे में सिर्फ 10 शव निकाले गए। बस के ड्राइवर किरनपाल को भी अस्पताल में भर्ती कराया गया। गोताखोरों की टीम घंटों मशक्कत करती रही। पुलिस के मुताबिक, 67 लोगों को बचा लिया गया। कहा जाता है कि गोताखोरों को कई बच्चों के शव मिले। कुछ घायल मिले, जो टीचर्स थे वे कैसे भी करके बच गए थे। 6 से 14 साल की उम्र के 30 से ज्यादा बच्चे उस दिन स्कूल नहीं पहुंचे। बाकी बच्चे बाद में स्कूल तो गए लेकिन ये 30 बच्चे स्कूल जाने के लिए बचे ही नहीं। चश्मदीदों ने यह भी बताया कि बैराज के पास के बहाव में कई बच्चे बह गए।

 

सरकार ने भी ‘फर्ज’ निभा दिया था
उस समय दिल्ली के मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा और दिल्ली पुलिस कमिश्नर टी आर कक्कर पहले रेस्क्यू ऑपरेशन का मुआयना करने पहुंचे फिर अस्पताल में घायलों से मिलने। इसके बाद वही हुआ जो इस घटना के पहले भी और आज भी होता रहा है। मुख्यमंत्री ने अपना धर्म निभाया और पुलिस ने अपना। सरकार ने मृतकों के परजनों ने 1 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों को 10 हजार और मामूली रूप से घायलों को पांच हजार रुपये देने का ऐलाना कर दिया। जांच का भी ऐलान कर दिया गया।

 

इस घटना के बाद ही वजीराबाद पुल के विकल्प की चर्चा शुरू हुई। सन 2000 में पुल बनाने को मंजूरी भी मिल गई। बाद में यह तय हुआ कि 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले ही तैयार हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसके बाद भी बार-बार इस ब्रिज को बनाने की डेडलाइन आगे बढ़ती रही आखिरकार 4 नवंबर को इस ब्रिज का उद्धाटन कर दिया। यह ब्रिज एक सस्पेंशन ब्रिज है, जोकि केबल्स के दम पर खड़ा है। इसे ऐतिहासिक बताया जा रहा है।

 

सवाल अब भी जस के तस हैं
खैर, उस हादसे के 21 साल बाद आज भी कुछ सवाल हैं, जो लगातार उठते रहे हैं। जैसे- क्या अब एक बस में बैठने वाले लोगों की संख्या नियंत्रित हो गई है? क्या हमारे पास हादसों को कम करने का कोई मैकेनिजम तैयार हुआ है? क्या इन 21 सालों में इस ब्रिज की वजह से जो हादसे हुए, उनके पीड़ितों को कोई जवाब दिया जा सकता है?