इरफान खान की फिल्म सामने चल रही थी, फिल्म में डायलॉग आता है, ‘ बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पाल्लियामेंट में।’ पान सिंह तोमर नाम की फिल्म के इस डायलॉग ने एक बार सोचने को मजबूर कर दिया। उस समय तो यह डायलॉग पसंद नहीं आया था लेकिन धीरे-धीरे खबरें पढ़ते और संसद की कार्यवाही देखते-देखते डायलॉग लिखने वाली की कलम चूम लेने का मन करने लगा।
बुधवार को गुजरात विधानसभा में कुछ ऐसा ही वाकया देखने को मिला। सदन में प्रश्नकाल चल रहा था, इसी बीच बीजेपी और कांग्रेस विधायकों के बीच हाथापाई हुई और फिर बात लात-घूंसों तक पहुंच गई। लड़ाई एकदम उस स्टाइल में हुई जैसे कक्षा 2 या 3 के बच्चे पेंसिल छीन लेने , कॉपी फाड़ देने या फिर धक्का दे देने की बात में आपस में कई बार भिड़ जाते हैं। बच्चे नादान होते हैं लेकिन सदन में दंगा करने वाले विधायक क्या हैं?
इस घटना के बाद विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी ने दो कांग्रेसी विधायकों को 3 साल के लिए और एक कांग्रेसी विधायक को एक साल के लिए निलंबित कर दिया। इन विधायकों के सदन में प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई है।
कमाल की बात है कि एसएससी परीक्षा में घोटाले के लिए आंदोलन करने वाले बच्चों पर लाठी चलती है, जेएनयू में छात्रहित की बात उठाने वालों को देशद्रोही कहा जाता है। जंतर-मंतर पर आंदोलन करने वाले किसानों को अजेंडा चलाने वाला और नक्सली कहा जाता है लेकिन सदन में उजड्डई करने वाले लोग हमारे नेता हैं। सदन में इस तरह की घटनाएं कोई नई नहीं हैं इसलिए हम लोग भी इसे हल्के में लेने लगे हैं। मीडिया ऐसे मुद्दे को हल्के बहस लायक भी नहीं समझता है। मीडिया के पास एक्सपेरिमेंट करने का इतना समय होता है कि वह गेस्ट एंकर-गेस्ट एंकर खेलता है।
जिम्मेदारी वोटर्स की भी है
जिम्मेदारी हमारी भी बनती है कि हम तय करें कि हम किसे चुनते हैं। हमें यह सोचना होगा कि हम ऐसे लोगों को चुनें जो सदन में जाकर जनता के मुद्दों को उठाएं। बहुत मस्ती चढ़े या कुश्ती करने का मन हो तो उसके लिए देश में बहुत अखाड़े हैं और ज्यादा मन करे तो विधायकी छोड़ दें और बिग-बॉस जैसे टीवी सीरियल्स में जाएं, वहां ऐसे ही नमूनों की जरूरत होती है।