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भारत-इजरायल: बड़े काम की है यह ‘दोस्ती’

इज़रायल के प्रधानमंत्री 6 दिनों के दौरे पर भारत आए हैं। यह इज़रायली प्रधानमंत्री का सबसे लंबा विदेशी दौरा है। 16 साल बाद कोई इज़रायली पीएम भारत आया है। इससे पहले नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे, जो इजरायल गए थे। बेंजामिन नेतन्याहू का यह दौरा उस दौरे के जवाब में ही है। यह दौरा कई असहजताओं को तोड़ने वाला है। इस दौरे से भारत की विदेश नीति पर पड़ी पुरानी धूल एक झटके में साफ हो गई है। पहले भारत विदेश नीति दिल से निभाता था, मगर ऐसा लग रहा है कि अब विदेश नीति में दिमाग का भी इस्तमाल होने लगा है।

भारत खुले तौर पर इजरायल से संबंध बनाने में हिचकता रहा है। पहले इजरायल से हाथ मिलाकर हमेशा अरब देशों को साधने में लग जाता था। मगर अब ऐसा नहीं हो रहा है। क्या यह सही है? क्या भारतीय विदेश नीति में बदलाव भविष्य के लिए अच्छे संकेत हैं? कई जानकार मान रहे हैं कि पूरी दुनिया की विदेश नीति बदल रही है, अरब देशों में जोर्डन और इजिप्ट के इज़रायल के साथ ठीक-ठाक संबंध हैं और आने वाले समय में इज़रायल का कट्टर दुश्मन सऊदी भी इजरायल से दोस्ती कर सकता है। इस बात का इशारा किंग सलमान अपने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘सऊदी 2030’ में दे चुके हैं।

 

ऐसा लग रहा है भारत की विदेश नीति भी विश्व परिदृश्य के हिसाब से बदल रही है। जिस तरह से मिडल ईस्ट इज़रायल को लेकर सॉफ्ट हो रहा हैं। इससे ऐसा नहीं लगता कि भारत इज़रायल से दोस्ती बढ़ाकर कोई गलती कर रहा है। जब अरब देश अपनी विदेश नीति में बदलाव कर सकते हैं तो भारत क्यों नहीं? दुनिया की सभी विदेश नीतियां फायदे को देखकर बनाई जाती हैं, राजनयिक संबंध फायदे के लिए ही बनाए जाते हैं। मगर भारत ही ऐसा एकमात्र देश है जो विदेश नीति भावनाओं के बहाव में बनाता है और इन नीतियों से भारत को कभी भी फायदा नहीं बल्कि घाटा ही होता है। चीन पर हमने आंख मूंदकर विश्वास किया लेकिन उसने हमेशा धोखा दिया।

 

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हमें अब तक क्या मिला?

हम फिलिस्तीनी मुद्दे पर हमेशा मिडल ईस्ट के साथ रहे हैं। विश्व में हम पहले गैर मिडल ईस्ट देश थे, जिसने पीएलओ (फलीस्तीन लिब्रेशन आर्मी) को मान्यता दिया। मगर बदले में मिडल ईस्ट के देशो ने हमें क्या दिया? सिर्फ धोखा और छल! कश्मीर के मामले में अरब देशों ने पाकिस्तान का समर्थन किया। हम अरब देशों को इसलिए समर्थन देते रहें हैं ताकि वे पाक के करीब ना आएं। लेकिन इससे क्या हुआ? अब जब हम इजरायल के साथ संबंध बना रहे हैं तो प्रधानमंत्री की आलोचना की जा रही है। ध्रुवीकरण और साम्प्रदायिकता पर आलोचना करना ठीक है, मगर विदेश नीति में भी मजहबी विवाद ढूंढ लेना गलत है।

 

इजरायल के साथ संबंध से भारत को हमेशा फायदा हुआ है। चीन-भारत और भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी इजरायल ने हमें समर्थन दिया। जब हमने पोखरण परीक्षण किया था तब पूरी दुनिया भारत के खिलाफ थी, उस समय भी इजरायल उन तीन देशों में था, जिन्होंने भारत का समर्थन किया। 1962 और 1971 के युद्ध में तो हमारा राजनायिक सम्बंध भी नहीं था फिर भी उसने हमारी मदद की। इजरायरल आज विश्व शक्ति है, दुनिया के 75% ड्रोन इजरायल में बनते हैं। आज वह विश्व के टॉप पाँच आर्म सप्लायर्स में से एक है। दुनिया की दूसरी सिलिकॉन वैली भी वहीं है। ऐसे में हमारा रिश्ता इजरायल के साथ मजबूत हो यह देश के लिए ही अच्छा है।


यह लेख राजीव कुमार ने लिखा है।

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