जुलाई 2002, तारीख यही कोई तेरह की थी, इंग्लैंड का लॉर्ड्स मैदान, जिसे क्रिकेट का मक्का कहा जाता है. मैच हो रहा था भारत और इंग्लैंड का. अमूमन जब मैच खत्म होता है तो कप्तान अपने हाथों से तालियां बजा रहे होते हैं और बाकी खिलाड़ियों से हाथ मिला रहे होते हैं. लेकिन उस दिन जब मैच की अंतिम गेंद फेंकी गई तो भारतीय कप्तान के हाथ में उनकी वो टीशर्ट थी जो उन्होंने पहन रखी थी, वो भी उसी लॉर्ड्स मैदान की बालकनी में. ऐसे कप्तान थे दादा सौरव गांगुली.
उस तारीख के करीब सोलह साल बाद, 2018 में, जब बहुत कुछ बदल चुका था, बोरिया मजूमदार की एक किताब का अनावरण हो रहा था, उस कार्यक्रम में दो गेस्ट थे एक का नाम विराट कोहली और एक का नाम सौरव गांगुली. बोरिया मजूमदार ने पूछा कि अगला विश्व कप उसी इंग्लैण्ड में होना है, क्या एक बार फिर कप्तान के हाथ में टीशर्ट देखने को मिलेगी. सौरव गांगुली जवाब देते हुए कहते हैं कि सिर्फ कप्तान ही नहीं सब खिलाड़ियों की टीशर्ट हाथ में होनी चाहिए.
गांगुली इस समय क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ बंगाल के अध्यक्ष हैं, हर कोई उनकी प्रशासनिक क्षमता की तारीफ कर रहा है, और बहुत संभावना है कि आने वाले सालों में वे BCCI में भी अपना प्रशासनिक कौशल दिखाएंगे, लेकिन भारतीय क्रिकेट में कप्तान के तौर पर उन्होंने जो छाप छोड़ी है वो इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है.
सौरव गांगुली को जब भारतीय टीम की कप्तानी सौंपी गई तो टीम मैच फिक्सिंग, खिलाड़ियों में गुटबाजी, जैसी घटनाओं के गुजर रही थी. उनके पास कठिन चुनौती थी, लेकिन गांगुली ने टीम को ना सिर्फ इन चुनौतियों से पार कराया बल्कि भारतीय टीम को विदेशों ने सफलताएं भी दिलाईं. गांगुली के दिलेरी के किस्से क्रिकेट प्रेमियों के बीच खूब मशहूर हुआ करते थे.
एक बार एक इंटरव्यू में सचिन तेंदुलकर कहते हैं कि नॉन स्ट्राइकिंग छोर पर खड़े होकर दादा के ऑफ साइड के शॉट देखना अपने आप में एक अद्भुत घटना थी. वीरेंद्र सहवाग तो अपनी सफलता का श्रेय ही सौरव गांगुली को देते हैं.
इन सब के बावजूद सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट टीम को जो दिया वही झलक आज के कप्तान विराट कोहली की आंखों में देखी जा सकती है. एक दौर था जब आस्ट्रेलियाई टीम के आगे विपक्षी खिलाड़ी घुटने टेक देते थे, लेकिन वो दादा ही थे जिन्होंने ये तिलिस्म तोड़ा और अब विराट कोहली उसी दिलेरी के साथ टीम इंडिया को आगे लेकर बढ़ रहे हैं.