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ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म
इसी इक मोड़ पर अक्सर गिरा जाता है ऊंचाई से अपनी ज़ात और ख़ाका मिटाया जाता है सब कुछ हो जिसमें ये सिफ़अत, क़ूवत कि जो अपना सके, जो घोल पाये सब कुछ अपने में
ग़मे-दिल और ग़मे जानां कहे बिन सह सके जो सब किसी इतनी बड़ी हस्ती के पहलू में किया जाता है सब कुछ गुम.
ज़िन्दगी सिर्फ मोहब्बत नहीं कुछ और भी है: साहिर लुधियानवी
विभाजन के बाद साहिर ने हिंदुस्तान छोड़ दिया और पाकिस्तान चले गए। उस दौर के मशहूर फिल्म निर्देशक थे ख्वाजा…
लॉकडाउन में शराब मिलने के बाद पढ़ें बेवड़ों का इंटरव्यू
देश एक मुश्किल दौर से गुजर रहा हैं। हम सब नौकरी से लेकर जान तक गवां रहे हैंं लेकिन एक…
