फिल्म का नाम: केदारनाथ
स्टोरी: अभिषेक कपूर और कनिका ढिल्लों
कलाकार: सुशांत सिंह राजपूत, सारा अली खान, नीतीश भारद्वाज
समय: 116 मिनट
लोकल डिब्बा रेटिंग: 1/5
फिल्म ‘केदारनाथ’ को समझने की कोशिश करते हैं तो पहली नजर में पता चलता है कि फिल्म को दो कारणों से बनाया गया है। पहला- सारा अली खान का डेब्यू कराने के लिए। दूसरा- केदारनाथ धाम की पूजा और यात्रा दिखाने के लिए। नाम के हिसाब से तो होना यह चाहिए था कि 2013 में हुई त्रासदी को डॉक्युमेंट करते हुए किसी कहानी से जोड़ा जाता। कोशिश शायद यही रही होगी लेकिन कहानी लिखने वाले बुरी तरह फेल हुए हैं।
दूसरा विकल्प ये था कि एक ऐसी प्रेम कहानी होती, जिसके दौरान यह दुर्घटना भी हो जाती और फिल्म का चरम उस हादसे के इर्द-गिर्द होता। यह भी नहीं हुआ। तीसरा विकल्प जो था और जिसकी वजह से विवाद भी पैदा किया जा रहा है, वह है तथाकथित ‘लव जेहाद’, इसे दिखाने में भी सीमित समझ पेश की गई है।
कहानी केदारनाथ घाटी में शुरू होती है और पिट्ठुओं का जीवन, पर्यावरण के खिलाफ साजिश, केदारनाथ के पहाड़ों की खूबसूरती और न जाने क्या-क्या दिखाने की कोशिश में कब लंबी लगने लगती है, समझ नहीं आता। हालांकि ऐक्टर्स ने अपना काम बखूबी निभाया है। सारा अली खान डेब्यू के हिसाब से काफी मेच्योर दिखी हैं और सुशांत सिंह राजपूत ने भी रोल को ठीक-ठाक ही निभाया है। बाकी सपोर्टिंग ऐक्टर्स ने भी अच्छा साथ दिया है।
पहाड़ों और घाटी का ड्रोन कैमरे से पिक्चराइजेशन और वीएफएक्स का इस्तेमाल कमोबेश ठीक ही है। एक बात यह है कि अगर कोई ऐसा हो जो 2013 के इस हादसे में अपनों को खो चुका हो और वह फिल्म में उनका दर्द समझने की कोशिश करे तो उसे आखिरी के 10 मिनट से ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा। फिल्म का एंड टिपिकल भारतीय फिल्म जैसा ही है।
संगीत की बात करें तो अचानक से शुरू हो जाने वाले गाने ‘थीम सॉन्ग’ से काफी पीछे हैं और गानों का कोई खास औचित्य भी नहीं समझ आया है। कुल मिलाकर एक ऐसी खिचड़ी बनाने की कोशिश की गई है, जो लेखक और निर्माता अभिषेक कपूर की कल्पनाशैली और रिसर्च पर ही सवाल उठाती है।