बहुत क्रूर और भयावह होता जा रहा है मीडिया का चरित्र

डिजिटल और टीवी मीडिया में काम कर रहे कथित पत्रकारों की ज़िन्दगी की धुरी यूपी/पीवी और टीआरपी के इर्द-गिर्द घूमती है. दुनिया में जितनी दुखदायी घटनाएं हो जाएं, मीडिया मालिकों और संपादकों की चांदी होने लगती है. उनका धंधा, अच्छा चलने लगता है.

घटनाएं जितनी भयावह और वीभत्स होंगी, संपादकों के चेहरे पर उतनी ही प्यारी मुस्कुराहट तैरती नजर आएगी. पीड़ा में आनंद भले ही मधुशाला जाने के बाद आती हो, कुछ क्रूर चेहरे ऐसे भी होते हैं जिन्हें हमेशा पीड़ा की तलाश होती है.

जैसे गलवान जैसी घटना हो जाए, जहां जवानों के साथ क्रूरता हुई है, जैसे कोई बॉलीवुड के चहेते सितारे की मौत हो जाए.
संपादकों की क्रूरता की कहानियां कई मौकों पर महसूस होती रही हैं.
गिद्ध हैं, सब कुछ नोंच लेने की लालसा है.

मामला ताजा है, इसलिए वही लेते हैं.

नीति कहती है कि व्यक्ति की सत्ता उसकी मौत के बाद खत्म हो जाती है. बहुत सारे दायित्व और प्रश्न उसकी मौत के साथ खत्म हो जाते हैं. उसकी निजता, नितांत उसकी निजता होती है. मौत के बाद वह सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए.

लेकिन याद कीजिए सुशांत की मौत के बाद क्या हुआ?

कुछ मीडिया संस्थानों के लिंक आगे पोस्ट कर रहा हूं, सोचकर बताइए क्या संपादकों को ऐसी खबरें चलाने की इजाजत देनी चाहिए थी. दुख यह है कि इन संपादकों ने खुद से स्टोरी प्लान करके जूनियर्स से कहानियां करवाई हैं. संपादकों में ज्यादातर लोग वही हैं जो खुद के प्रगतिशील होने का दावा करते हैं.

उच्च कोटि की मानवता की बात करते हैं, लेकिन उनका यथार्थ यही है. गिद्ध, निर्दयी और क्रूर.


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जिस शख्स के साथ रिश्ता टूटे 6 साल हो गए, दूसरे शख्स की मौत भी हो गई, उसे क्यों कुरेद रहे हो. क्या यह सब अंकिता की मर्जी से हो रहा है. सितारों की कोई निजी जिंदगी नहीं होती है क्या? क्या उन्हें ऐसी बेहूदी कहानियों से चिढ़ नहीं होती होगी?

बेटे की मौत की खबर सुनकर कौन पिता नहीं टूटता है. कौन बोल पाता है. मरे हुए बेटे की तस्वीर देखकर कोई भी भावुक होगा, पिता क्यों नहीं होगा. सुशांत मर गए, अब उनकी मौत को तो न बेचो. कहानियां दूसरी भी तो हो सकती हैं. प्यार, मोहब्बत, ब्रेकअप और परिवार के रुदन से इतर. क्या यह सब नैतिक लगता है आपको?

मीडिया नीति की बात करे तो टीवी स्क्रीन फोड़ देने का मन करता है. कहां से पत्रकारिता की शुरुआत हुई होगी, कहां पत्रकारिता पहुंच गई है. इसकी परिकल्पना भी किसी ने नहीं की होगी.

राष्ट्रभक्ति की बात करेंगे तो ऊब होने लगती है. ऐसी स्टोरी प्लान की जाती है जिससे दुनिया में देश का डंका बज जाए. चीन-पाकिस्तान को मिर्ची लगाते हैं.
मिर्ची क्या होती है. क्या भाषाई बेहूदगी है यह. कौन लोग हैं जो इसकी इजाजत देते हैं. एक दिन एक नामी वेबसाइट की लीड स्टोरी पढ़ी. आप भी पढ़िए.

PAK-मलेशिया के बाद भारत ऐसे खत्म करेगा तुर्की की ‘चौधराहट’

अब चीन की चौधराहट क्या है. क्लिक के लिए कुछ भी सकता है, मीडिया के धंधे में. यूवी-पीवी के चक्कर में वेबसाइट और टीआरपी के चक्कर में टीवी रोज नए-नए गुल खिला रहे हैं. विषय कुछ भी हो, कोरोना ही क्यों न हो, पाई पाई बेचने की भरपूर तैयारी है. प्रवासी मजदूरों का दर्द बेचा गया, कोरोना से होने वाली मौत बेची गई, सुशांत की मौत बेची गई, गलवान में शहीदों की शहादत बेची गई, सब कुछ बेच देंगे मीडिया वाले. बस चलता तो देश भी.

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